मंगलवार, 30 जून 2020

आपकी सेवानिवृत्ति पर कुछ

प्रो॰ दीपक भटनागर (बायें) और डॉ॰ जसवंत सैनी (दाएं)

मैं यह ब्लॉग राजस्थान विश्वविद्यालय के भौतिकशास्त्र विभाग से आज सेवानिवृत्त हो रहे दो लोगों के बारे में लिख रहा हूँ जो इस चित्र में सम्मिलित हैं। मैं अन्य लोगों की तरह आपको बधाइयाँ  भेजने के स्थान पर इस ब्लॉग में वो खट्टी मिट्ठी यादें साझा करना चाहूँगा जो मैंने पिछले 12 वर्षों में प्राप्त की हैं। मैं वर्ष 2008 में यहाँ से MSc करने आया था तब आपको नहीं जानता था। धीरे धीरे मैं जानने लगा। चूँकि आप दोनों का शोध कार्य माइक्रोवेव से सम्बंधित रहा है और यह विषय मैंने मेरी पढ़ाई में नहीं चुना। अतः मैं आपसे इस विषय के बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहा। अब मैं आगे के दो पैराग्राफ में अलग अलग अनुभव लिखूँगा। आप दोनों लोग हैं प्रो॰ दीपक भटनागर और डॉ॰ जसवंत सैनी। सामान्यतः  ऐसे समय पर विभाग में सभी शिक्षकों के साथ मिलकर एक लघु कार्यक्रम रखा जाता है लेकिन इस बार कोविड-19 के कारण यह नहीं हो सका। दिसंबर 2013 में भौतिक शास्त्र विभाग में जब मैंने यहाँ नौकरी आरम्भ की उसके बाद के बहुत अनुभव हैं। वो भी निम्नलिखित शब्दों में उल्लिखित हैं।

पहले मैं भटनागर जी के बारे में लिखता हूँ। आपसे मुझे विद्यार्थी के रूप में पढ़ने का मौका नहीं मिला क्योंकि आप जो विषय पढ़ाते रहे थे वो मुझे ऐच्छिक विषय के रूप में नहीं मिला। अतः  आपके साथ अधिकतर अनुभव मेरे नौकरी में आने के बाद के हैं। आपको सामान्यतः कुछ हल्का चटपटा अथवा मिठाई मंगवाकर खाते विभाग में देखा। इसी तरह आपकी प्रयोगशाला में भी कई बार दावत होते देखी। शायद आपकी लैब में हर पेपर के प्रकाशन पर दावत होती थी। इससे प्रेरित होकर मैं भी आपसे विभिन्न अवसरों पर मिठाई माँगने लगा। मिठाई खाने से ज्यादा मजा आपसे मिठाई मांगने में था। इस मिठाई के सम्बन्ध ने आपसे दोस्ती को बढ़ावा दिया। इसके बाद आपसे आधी आयु में होते हुए भी मैं खुलकर बात कर सकता था। आपसे लड़ाई कर सकता था और सबसे अधिक, आपके साथ बच्चों की तरह जिद्द भी की। कई बार कुछ सही बातों पर आपको गुस्सा करते भी देखा लेकिन धीरे धीरे अचानक मेरी समझ बदली या आपमें अधिक सरलता आ गयी, मैं नहीं समझ पाया। शायद झगड़ा तो दूर की बात हो गयी। आप हर बात और हर काम को हाँ करने को कह दिया करते थे। मुझे कोई छोटा मोटा सामना चाहिए होता था और मैं आपसे बिल पास करवाने जाता तो आप बिना देखे ही हस्ताक्षर कर दिया करते थे। मैं कई बार मजाक में आपसे पूछता कि आपसे मैं किसी भी पत्र पर हस्ताक्षर करवा लूँ तो आप शायद ना नहीं कहोगे और आप भी ऐसा ही कहते। शायद आपसे मुझे भी प्यार हो गया था। बस मेरी कुछ अपेक्षाएँ और भी थी जो आपने पूरी नहीं की: मैं आपको सायकिल चलाते देखना चाहता था, लेकिन आपने ये नहीं दिखाया। मैं आपके साथ पैदल घूमना चाहता था लेकिन आप घुटनों में दर्द के कारण शायद इसमें भी मुश्किल दिखाते रहे हो। कई बार मैं आपको बॉलीवुड हिन्दी फिल्म 102 Not Out का हवाला देता तो आप भी हंस दिया करते। आपसे प्यार भी बहुत मिला और वो आपका प्यार मेरी जिद्द को आगे बढ़ने का मौक़ा देता। मैं मेरे सामाजिक जीवन में ऐसे लोगों के साथ रहने की हमेशा अपेक्षा रखता हूँ। मुझे उस समय बहुत आनंद प्राप्त होता था जब आप किसी भी तरह के मजाक में भी एक जगह मेरे सामने बुरी तरह से हार मान लेते थे और वो था कंप्यूटर और इंटरनेट से जुड़ा मामला। हालाँकि आप भी कंप्यूटर की समझ रखते हो और आपने C/C++ programming language  उस समय सीख ली थी जब मैंने कंप्यूटर का नाम भी नहीं सुना था। लेकिन फिर भी आप मुझे बेहतर मान लेते थे। वैसे तो आपने शायद किसी को भी यह नहीं कहा कि आपसे मैं बेहतर जानता हूँ लेकिन ऐसा आत्मसमर्पण, ऐसे लगता था जैसे आपने मुझे बहुत ऊँचे स्थान पर खड़ा कर दिया हो। मुझे आपसे सबसे अधिक प्यार का अनुभव उस दिन मिला जब इसी माह की 14 तारीख को मैंने विभाग में बिजली का झटका लगा और आपने मेरे अनुरोध के कुछ ही मिनट में electrician को भेजकर सबकुछ सही करवाया। आपका गायन मुझे बहुत अच्छा नहीं लगता था क्योंकि आप कितना भी अच्छा गाते हों, जगजीत सिंह जैसे गायकों की तुलना में शायद बहुत कम हो लेकिन आपके गायन में मुझे वो स्वतंत्रता मिलती थी जो मैं पसंद करता हूँ। सामान्यतः कहीं भी लोग ज्ञान देने पहुँच जाते हैं कि आप व्यवसाय में हो, उसमें ये ठीक है और ये ठीक नहीं है परन्तु जब आपको स्वंत्रतर रूप से गाते सुनता और देखता तो ज्ञात होता कि आप अपने प्रोफेशन के साथ व्यक्ति भी हो, जिसकी स्वयं की स्वतंत्रता होती है और उसी पर उसे मुग्ध होना चाहिए। आपके गायन के समय आपकी मुक्त शैली मुझे बहुत पसंद आती रही है। आशा करता हूँ मुझे आगे भी आपसे जिद्द करने और आपके मुक्त गायन का आनंद मिलता रहेगा।

अभी मैं सैनी जी के बारे में लिख रहा हूँ, आपको सबसे पहले विज्ञान भवन में विद्युत्गतिकी (electrodynamics) के शिक्षक के रूप में देखा। शुरुआत में आपका शिक्षण अच्छा लगा या बुरा, कुछ ठीक से कह नहीं सकता क्योंकि वो विषय मेरी रूचि का था और जब आपकी रूचि का विषय कोई पढ़ा रहा हो तो बुरा शायद ही लगे। आपसे मेरा अच्छा परिचय तीसरे सेमेस्टर में तब हुआ जब आपने माइक्रोवेव लैब में पहला प्रयोग करवाया। वास्तव में यह प्रयोग आपने मेरे सहपाठी राजपाल रुहेला को करने को दिया था लेकिन वो डरकर आपसे भागने लग गया। उसी समय मुझे मौक़ा मिला की वो प्रयोग मैं करूँ। मैंने हर समस्या आपसे साझा की और प्रयोग सफल रहा। मैंने प्रयोगशाला में अन्य प्रयोग भी किये लेकिन पहले प्रयोग ने आपसे मुझे जोड़ दिया। उस प्रयोग को ऐसा सीखने का मौक़ा मिला की बाद में TIFR के साक्षात्कार में भी वो प्रयोग सहायक बना। शायद वो प्रयोग नहीं किया होता तो उस साक्षात्कार में मुझे समस्या होती। मैं आपसे उसी समय खुलकर हर तरह की समस्या पूछना आरम्भ कर चुका था। यदि मुझे अंग्रेजी संबंधी समस्या आती थी तब भी मैं आपसे पूछने ही जाया करता था। जब मैं नौकरी लगाने के बाद आपके साथी के रूप में वापस आया तो शुरुआत में मैं अपने आपको भी थोड़ा होशियार मानने लग गया था लेकिन आपने एक दिन बड़े प्यार से TTL परिपथ में मेरी समझ को सही किया। उसके बाद तो मुझे मजा आ गया था। मैं खुलकर आपको समस्याएं पूछ लेता हूँ। घर पर भी मैं आपके पडोसी के रूप में रहा हूँ और जब रहा तब मुझे पड़ोसी का अनुभव नहीं हुआ बल्कि ऐसा एहसास हुआ कि मैं आपके घर का ही सदस्य हूँ, बस मेरे पास स्वतंत्रता अधिक है। आपने जब नया घर लिया तब भी मैं आपके घर इसी तरह से जाता हूँ जैसे मेरा अपना घर हो। ऐसी स्वतंत्रता शायद मेरे किसी और शिक्षक के साथ मुझे नहीं मिली। मुझे अपने घर की तरह लगने का एक कारण यह भी है कि मैं आपके घर जब आता हूँ तो मैं रसोई में पड़ी मिठाई भी बिना पूछे खा लेता हूँ। मैं लोगों को आपका घर दिखाने भी ऐसे आ जाता हूँ जैसे मेरा अपना घर हो। आपके साथ विश्वविद्यालय में भ्रमण का एक अलग ही अनुभव है जो मुझे मेरे मन की कई बातें आपके साथ करने के लिए अतिरिक्त समय देता था। इसके अतिरिक्त तकनीकी के रूप में आपकी कुछ भूल आप जिस ईमानदारी से मुझे बता देते हो, वो भी एक सुन्दर अभिव्यक्ति लगती है। आशा करता हूँ कि आपके घर मैं अब भी इसी तरह आता रहूँगा और मुझे ऐसा ही प्यार अब भी मिलता रहेगा।

इसके अतिरिक्त मैं आप लोगों को आपके लम्बे सेवानिवृत समय की शुभकामनायें देता हूँ। मैं चाहता हूँ कि जब मैं सेवानिवृत हो जाऊँ तब आप लोगों के साथ सायकिल चलाऊँ। मैं यह भी चाहता हूँ कि आप समय समय पर हमें इसका एहसास करवाते रहें की गुरु, गुरु होता है और उसके बिना शिष्य निरर्थक रह जाता है। बहुत बहुत शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरा पूरा ब्लॉग पढ़ा।