शनिवार, 19 नवंबर 2022

लोगों के साथ काम करने की कला : पुस्तक समीक्षा

अभी कुछ माह पहले मैं मुम्बई आ रहा था तब से एक पुस्तक पढ़ने का प्रयास किया था लेकिन रेलगाड़ी में इसे पढ़ नहीं पाया। चूँकि बाद में समय का प्रबन्धन नहीं कर पाया अतः लिखकर पढ़ना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज़ी भाषा में लिखी हुई मेरे पास उपलब्ध पुस्तकों में सबसे छोटी पुस्तक यह थी और इसको मैंने अगस्त 2019 में क्रय किया था और यह शायद वर्ष 2001 में पहली बार मुद्रित हुई है। इस पुस्तक का शीर्षक "The Art of Dealing with People" (अर्थात् लोगों के साथ काम करने की कला) है और इसे लेस गिब्लिन नामक लेखक ने लिखा है। इस पुस्तक में कुल 57 पृष्ठ हैं और पृष्ठ का आकार भी लगभग सामान्य ए4 पृष्ठ की एक तिहाई है। इसके रचियता लेस गिब्लिन हैं जिनके नाम को लेस जिब्लिन भी पढ़ा जाता है। इसमें लिखे के अनुसार उन्होंने सैकड़ों कंपनियों और संगठनों के लिए लोगों के कौशल पर हज़ारों में सेमिनार संचालित किये हैं। उनकी विभिन्न पुस्तकें बेस्ट सेल्लर रही हैं, जहाँ बेस्ट सेल्लर लोकप्रियता के स्तर को उनकी विक्रय होने की संख्या के आधार पर मापन किया जाने वाला एक प्राचल है। पुस्तक में मुझे कुछ रोचक जानकारियाँ मिली। वैसे तो ऐसी जानकारियों से हर कोई परिचित होता है लेकिन फिर भी मुझे ये विशेष लगी अतः इन्हें लिखकर रख रहा हूँ।


पुस्तक की शुरुआत नॉर्मन विंसेंट पील के उद्धरण से होती है। पील एक अमेरिकी प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के पादरी थे जिन्होंने सकारात्मक सोच की अवधारणा के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न पुस्तकें लिखी और इस तरह वो एक लेखक भी थे। यहाँ उनकी निम्नलिखित सूक्ति उद्धृत किया है: "...सोचने की क्षमता दिमाग को सतर्क एवं पर्याप्त रूप से प्रभावशाली बनाता है जिससे अवचेतन मन से आने वाली सोच को बदला जा सकता है; एक रचनात्मकता से भरी सोच जो सफलता और खुशियों की ओर अग्रसर करती है।"

पुस्तक की विवरणिका में 11 अध्याय होने का विवरण दिया गया है जो उन सभी विषयों को इंगित करते हैं जिससे व्यवहार को अच्छा किया जा सकता है। इसकी समीक्षा आगे की गयी है।

पहला अध्याय मानव सम्बंधों के बारे में रचनात्मकता से सोचने से सम्बंधित है। इसकी शुरुआत में कहा गया है कि जीवन में सभी का लक्ष्य सफलता और खुशियाँ होता है और इसको यदि गणितीय सुत्र से बांधा जाये तो यह एक भिन्नात्मक संख्या होगी जिसका हर अन्य लोग होंगे। अन्य लोगों का अर्थ उनका हमपर पड़ने वाला प्रभाव है जो हमारी उस क्षमता पर निर्भर करता है कि हम अन्य लोगों से कैसे निबटते हैं। इसमें केवल व्यक्तिगत संतुष्टि ही पर्याप्त नहीं है बल्कि अन्य लोगों के अहंकार पर पड़ने वाला प्रभाव भी आवश्यक भाग है। 90 प्रतिशत लोग केवल इसलिए असफल होते हैं क्योंकि वो अन्य लोगों को अच्छा व्यवहार नहीं कर पाते हैं। आपके व्यक्तित्व की समस्या अन्य लोगों के लिए परेशानी हो सकती है। कई बार व्यक्तित्व की समस्या के कारण लोग सामने से अलग दिखाई देते हैं और होते कुछ और हैं। शर्मिला दिखने वाला व्यक्ति एकदम उल्टा हो सकता है। कुछ लोग अपने आप को सर्वश्रेष्ट मान लेते हैं और सोचते हैं कि उनके साथी उनकी सराहना क्यों नहीं करते। जबकि समस्या उनके स्वयं के व्यवहार की होती है। हम किसी को पसन्द करें या न करें वो उसी तरह से रहने वाले हैं अतः किसी भी पैसे में सफल होने के लिए बुद्धिमान होना पर्याप्त नहीं है बल्कि इसके साथ लोगों के साथ व्यवहार भी मायने रखता है। एक पति-पत्नी एक दूसरे के साथ केवल बहुत आकर्षक होने से खुश नहीं रह पाते बल्कि एक दूसरे का साथ निभाने की समझ उनको खुश रखती है। मानव सम्बंधों में कौशल भी अन्य विषयों में कौशल के समान ही है जिसमें कुछ सामान्य सिद्धान्तों को समझना आवश्यक होता है। आप क्या कर रहे हैं इसके साथ यह भी ज्ञात होना आवश्यक है कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। लोगों को प्रभावित करना एक कला है नौटंकी नहीं। इस पुस्तक को केवल व्यक्तिगत विचारों के आधार पर नहीं लिखा गया है बल्कि इस पुस्तक में विभिन्न प्रेक्षणों को समाहित किया गया है।

पुस्तक का दूसरा अध्याय मानव अहंकार को समझने के बारे में है। मानव अहंकार कई बार इस स्तर का हो जाता है कि लोग इसके लिए सबकुछ दाँव पर लगा देते हैं और इसी कारण अहंकारी शब्द को नकारात्मक अर्थों में लिया जाता है। लोग अपने अहंकार और आत्मस्वाभिमान को जोड़कर रखते हैं और इसमें अन्तर करना भूल जाते हैं। इसका स्तर प्रत्येक व्यक्ति में अलग होता है इसीलिये हम लोगों को मशीनों अथवा संख्याओं के रूप में नहीं मान सकते। हम यह मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति एक अहस्तांतरणीय अधिकार लेकर जन्म लेता है जो उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है। हालांकि यह पुस्तक धर्म के बारे में नहीं है लेकिन मानव व्यवहार को धर्म से पूर्णतः अलग करके नहीं समझा जा सकता। जैसे यदि प्रत्येक व्यक्ति सभी को ईश्वर की संतान मानने लग जाता है तो व्यवहार उसके अनुरूप बदल जाता है अन्यथा वो धन अर्जित करने और अधिकार प्राप्त करने की दौड़ में लगे रहते हैं जिससे उनकी आत्मनिष्ठ के रूप में उनका अहंकार बढ़ता रहता है। आपको चार बातें अपने दिमाग में हमेशा स्थायी रूप से लिख लेनी चाहिये:
  1. हम सभी अहंकारी हैं,
  2. हम स्वयं में सबसे अधिक स्वयंहित की सोचते हैं
  3. आप जिस व्यक्ति से भी मिलते हो वो कुछ मात्रा में महत्त्वपूर्ण महसूस करना चाहता है
  4. सभी में दूसरों से अनुमोदन पाने की प्रबल इच्छा होती है जिससे उन्हें स्वयं को सिद्ध न करना पड़े।
लोगों को आत्म-केन्द्रित और अभिमानी क्या बनाता है? अहंकारी व्यक्ति का स्वाभिमान बहुत कम होता है। यदि आप अपने आप स्वयं से अच्छा व्यवहार करते हो तो अन्यों के साथ भी अच्छे रहोगे। भूखे व्यक्ति का अहंकार सामान्य अहंकार है। प्रकृति की सभी रचनाओं की मूलभूत आवश्यकताओं की कमी में उनका व्यवहार बदल सकत है और उनका इलाज उस आवश्यकता को पूर्ण करना है। भूखे व्यक्ति को ज्ञान देकर शान्त नहीं किया जा सकता बल्कि उसको भोजन देकर उसके अहंकार को कम कर सकते हैं। पदानुक्रम में अपने से निम्न पद पर स्थित व्यक्ति को दबाना लोगों के लिए स्वयं को संतुष्ट करने का एक सरल उपाय होता है जिसके इतिहास में बहुत उदाहरण मिल जायेंगे। जब अत्मसम्मान अवनति की ओर होता है तब एक दोगली बात भी उसको गुस्सा दिला सकती है। कम आत्मसम्मान वाले व्यक्ति के कारण उत्पन्न समस्या में उनकी तरह बनकर उनकी सहायता करो। ऐसे व्यक्तियों के पीछे दो कारण होते हैं जिनमें पहला उनके द्वारा स्वयं को महत्त्वपूर्ण दिखाना एवं दूसरा उनका डर। ऐसे लोगों के लिए उनके कुछ सकारात्मक पक्षों को सामने लाते हुये उनके अहंकार को बढ़ाना चाहिए। निष्ठाहीन चापलूसी नहीं करनी चाहिये बल्कि उनके कुछ ऐसे गुणों को सामने रखना चाहिये जो उनमें समाहित हैं। आप दिन में कम से कम पाँच बार ईमानदारी से प्रशंसा करो और बाद में देखो कि अन्य लोगों के साथ आपके सम्बंध कितनी आसानी से सुधर रहे हैं। मानव सम्बंधों में असफलता का पहला कारण लोगों का स्वयं का अहंकार होता है। लेखक ने स्वयं की एक घटना लिखी है कि वो एक बार एक होटेल में गये और वहाँ पर लिपिक ने उन्हें कहा कि आपको पहले बताना चाहिए था, अब उनके पास कोई जगह खाली नहीं है। इसपर लेखक ने प्यार से उन्हें जताया कि वो तो उनके भरोसे पर ही आया था और यदि वो जगह नहीं देंगे तो उन्हें खुले में ही रात निकालनी पड़ेगी। इसपर लिपिक ने आधे घंटे का समय माँगा और उस सम्मेलन कक्ष में जगह दे दी जिसको जरूरत पड़ने पर शयन कक्ष में बदला जा सकता है। इसमें दोनों को खुशी मिली। लोगों की उसी तरह से सहायता करो जैसे वो हैं।

पुस्तक के तीसरे अध्याय में लोगों को महत्त्वपूर्ण महसूस करवाने के बारे में है। शिष्टाचार और सभ्य होना दो ऐसे रास्ते हैं जो हमें लोगों के महत्त्व को स्वीकारोक्ति दिलाते हैं। हमें यह महसूस करना चाहिये कि लोग हमारे महत्त्व को पहचान एवं स्वीकार कर रहे हैं। अन्न्य लोगों को महत्त्वपूर्ण महसूस करवाने के चार तरीके ये हैं:
  1. अन्य लोगों को महत्त्वपूर्ण समझो
  2. लोगों को ध्यान से देखो जिससे उन्हें अपना महत्त्व अधिक दिखाई देगा और वो आपको उचित सम्मान देने लगेंगे
  3. लोगों के प्रतियोगी मत बनो, यदि आप किसी पर अपना प्रभाव छोड़ना चाहते हो तो उन्हें यह पता चलने दो कि आप उनसे प्रभावित हो और 
  4. यह जानकारी रखो कि दूसरों को सही कहाँ करना है।

पुस्तक का चौथा अध्याय दूसरों की कार्यवाही और मनोदृष्टि को नियंत्रित करने से सम्बंधित है। प्रत्येक व्यक्ति में दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता होती है और हम हमेशा बहुत लोगों को कुछ हद तक प्रभावित करते हैं। किसी से बात करने पर उसका भी प्रभाव पड़ता है। आपको यह देखना चाहिये कि लोग क्या कहना चाहते हैं। जोश जुकाम से जल्दी पकड़ता है। आत्मविश्वास से आत्मविश्वास बढ़ता है अतः दूसरों पर विश्वास करना सीखो। अपने व्यक्तित्व में चुम्बकत्व उत्पन करो। अपनी चाल को देखो, आपकी चाल आपकी मनःस्थिति को निरूपित करती है। आपकी गपशप लोगों को आप स्वयं को कितना जानते हो, उससे अधिक समझा देती है। अपने आवाज के लहजे अथवा स्वर के सुर को संतुलित रखो। मुस्कान को सामने आने दो जो केवल बनावटी न हो और अन्दर से आये। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्रि विंस्टन चर्चिल के उस कथन को याद रखो जिसके अनुसार वो यह कहते हैं कि आप दूसरों को यह दिखावो कि आप उनपर विश्वास करते हो। प्रत्येक व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं लेकिन जब आप विश्वास प्रदर्शित करते हो तो लोग अपना अच्छा दिखाने का प्रयास करते हैं।

पुस्तक का पाँचवा अध्याय लोगों पर अच्छी छाप छोड़ने से सम्बंधित है। लोग अपने बारे में क्या सोचते हैं इसपर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है कि हम स्वयं के बारे में क्या सोचते हैं। कभी भी अपने आप को न छुपायें। जब भी हम किसी विषय पर अपनी राय रखते हैं तब लोगों को हम अपने बारे में संकेत देते हैं जिससे वो अपने बारे में अपनी राय बना सकें। प्रतियोगिता में दस्तक न दें अर्थात जब आप दूसरों पर अच्छा प्रभाव छोड़ना चाहते हैं तो केवल अपने प्रभाव को आगे बढ़ायें। लोगों से नकारात्मक प्रश्न न पूछें क्योंकि उनसे नकारात्मकता बढ़ती है, केवल सकारात्मक सवाल रखें जिसमें लोगों को हाँ में उत्तर देने में सहजता हो। प्रश्न को कभी ऐसे न रखें जिससे लगे कि आप समस्य में हैं बल्कि अपना मत रखते हुये प्रश्न रखें। धीरता से यह मान लें कि आप क्या चाहते हैं, लोग वो ही करेंगे। किसी को प्रभावित करने के लिए बहुत कठिन प्रयास न करें।

पुस्तक का छठा अध्याय लोगों को स्वीकृति, अनुमोदन और प्रशंसा के साथ आकर्षित करने पर केंद्रित है। लोगों को उसी तरह स्वीकार करो जैसे वो हैं। उनको बदलकर स्वीकार करने का प्रयास मत करो। हमें लोगों को उनकी नकारात्मकता और गलतियों के साथ स्वीकार करना चाहिये। अनुमोदन से आशय यह है कि आप सभी में सकारात्मकता देखकर उन्हें स्वीकार करो। लोगों को यह प्रदर्शित करने का प्रयास करो कि वो आपके लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं। इसके लिए आप लोगों को प्रतीक्षा में मत रखो और यदि किसी को प्रतीक्षा में रखना पड़ रहा है तो उसे तुरन्त यह ध्यान दिला दो कि आपको पता है कि आपको प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। लोगों को धन्यवाद ज्ञापित करो और सबके साथ ऐसा व्यवहार रखो जिससे उन्हें विशेष होना महसूस हो।

पुस्तक का सातवां अध्याय प्रभावी ढ़ंग से संवाद करना सीखने पर है। लोगों से संवाद करना हमारी खुशियों को बढ़ाता है और इसके लिए संवाद को प्रभावी रूप से कैसे करें, यह सीखना आवश्यक है। इसके लिये सबसे पहले अपने आप को उत्तम दिखाने का प्रयास बन्द कर दें। लघु वार्तायें सामान्यतः प्रभावशाली नहीं होती लेकिन वो संवाद आरम्भ करने और उसे चलायमान बनाये रखने में सहायक होती हैं। किसी के साथ संवाद आरम्भ होने पर उसे एक स्तर पर जाने दें। संवाद को आरम्भ से ही उच्च स्तर का होने की अपेक्षा न रखें। लोगों को अपने बारे में बोलने दें जिससे सामने वाला सहज महसूस करे। लोगों को उनके बारे में पूछकर उत्तेजित करें जैसे आप कहाँ के हो? हमारे मौसम के बारें आपके क्या विचार हैं? इत्यादि। लोगों को ऐसे प्रश्न पूछें जिनमें उनकी रुचि हो। अपने बारे में केवल तब बोलें जब आपको इसके लिए आमंत्रित किया गया हो एवं ऐसा कहा गया हो। हमेशा खुशियों भरी बातें करें, कभी भी अपने आप को दयनीय स्थिति में दिखाने वाली बातें न करें। जब आपके दिल में कोई बात चुभ रही हो अथवा बूरी लग रही हो तो बैठकर उसे कागज पर लिखें और फिर कागज को जला दें, इससे जरूर आराम मिलेगा। ऐसी चुभन वाली बातों को दूसरों पर न उडेलें। लोगों को चिढ़ाने अथवा उनपर व्यंग्यात्मक होने के प्रलोभन से बचें।

पुस्तक का आठवाँ अध्याय सुनने पर केन्द्रित है। सुनना आपको चालाक बनाता है। यदि आप लोगों को सुनते हो तो वो आपको यह बताना चाहेंगे कि वो क्या चाहते हैं। कई बार आवश्यकता से अधिक बोलना हमें औरों से अलग कर देता है। सुनने से आत्मचेतना पर काबू प्राप्त होता है। आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि लोग क्या चाहते हैं; उनकी आवश्यकता क्या है; और इसके लिए प्रभावी कदम क्या होंगे। सुनने की कला का अभ्यास करें: 
  1. जो व्यक्ति बात कर रहा है, उसकी तरफ देखें,
  2. बोलने वाले के हर संवाद पर उचित अभिव्यक्ति प्रदर्शित करें जिससे यह प्रतीत हो कि आप बहुत ध्यान से सुन रहे हैं
  3.  बोलने वाले की तरफ झुककर बैठें
  4. प्रश्न पूछें
  5. बीच में न रोकें और और जानकारी प्राप्त करने के तरीके से आगे के प्रश्न रखें
  6. बोलने वाले के विषय से जुड़े रहें और
  7. अपने बिन्दु को आगे बढ़ाने के लिए बोलने वाले के शब्दों को काम में लें।

पुस्तक का नौंवा अध्याय लोगों को अपने विचारों से सहमत करने से सम्बंधित है। इसके अनुसार लोगों के एकदम खराब विचारों पर उन्हें सीधे न टोकें क्योंकि ऐस करने पर वो आपके विचारों के लिए अपने दरवाजे हमेशा के लिए बन्द कर देंगे। अपने विचार दूसरों से मनवाने के लिए उनके अवचेतन मन को जगाना होता है जिसके आगे उनका अहंकार द्वारपाल की भूमिका में रहता है। लोगों से वेबजह की बहस न करें और इससे बचने के लिए जहाँ सुलभ न लगे वहाँ अपने कान बन्द कर लें क्योंकि कोई हथोड़ा लेकर आपके पास नहीं आया है। बहस जीतने के लिए आप इन नियमों का पालन कर सकते हैं:
  1. दूसरों को उनका विचार पूरी तरह रखने दें
  2. उत्तर देने से पहले रूकें और प्रश्न पूछने वाले के हावभाव को समझने का प्रयास करें
  3. हमेशा सौ प्रतिशत जीत का हठ न करें और यदि सामने वाले के पास कोई अच्छा तर्क है तो उसकी सराहना करें
  4. अपनी स्थिति को सटीकता के साथ आराम से प्रस्तुत करें
  5. तीसरे पक्ष का सहारा लें जिसमें आप अन्य व्यक्तियों अथवा प्रकाशनों को सन्दर्भित कर सकते हैं और
  6. अन्य लोगों को अपना चेहरा (कीमत) बचाने का स्थान दें।

पुस्तक का दसवां अध्याय प्रशंसा पर आधारित है। लोगों को उनके छोटे-छोटे कामों के लिए भी धन्यवाद दें और यह अपेक्षा न रखें कि कुछ बड़ा करने पर ही प्रशंसा की जायेगी। हर दिन लोगों की प्रशंसा करें। दयालुता के साथ उदारता भी प्रदर्शित करें। किसी को धन्यवाद ज्ञापित करने के कुछ नियम इस प्रकार हैं:
  1. धन्यवाद वास्तविक होना चाहिए।
  2. स्पष्ट रूप से बोलें, मन में अथवा अस्पष्ट न रहें
  3. लोगों को नाम से धन्यवाद दें
  4. जब धन्यवाद ज्ञापित करें तब लोगों की ओर देखें
  5. जिस कार्य के लिए धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हैं उसको इंगित करें और
  6. लोगों को उस समय भी धन्यवाद बोलें जब वो इसकी बिलकुल अपेक्षा नहीं करते हों। प्रतिदिन कम से कम पाँच बार लोगों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुये अपने मन को खुश और शान्त पाने का प्रयास करें।

पुस्तक के अन्तिम अध्याय अर्थात् ग्याहरवें अध्याय में लोगों की आलोचना के बारे में कहा गया है। इसमें यह स्पष्ट है कि लोगों की आलोचना अपने अहंकार के लिए न करें और इसके लिए आवश्यक है कि आपको आवश्यक होने पर ही आलोचना करनी है जिसमें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए:
  1. आलोचना पूर्ण रूप से गोपनीयता के साथ करनी चाहिए
  2. आलोचना को भी दयालु शब्दों के साथ और प्रशंसनीय भाव में करनी चाहिये
  3. आलोचना को कभी व्यक्तिगत रूप में न करें; कार्य की आलोचना करें, व्यक्ति की नहीं
  4. जब आप किसी को उसकी गलती से अवगत करवा रहे हो तो साथ में यह भी बतावो कि सही क्या है
  5. सहयोग के लिए पूछें, इसकी मांग न करें
  6. किसी गलती के लिए एक बार ही कहें, दूसरी बार कहना अनावश्यक है एवं तीसरी बार नुकताचीनी में आ जाता है और
  7. हमेशा दोस्ताना माहौल में चर्चा का अन्त करें।

पुस्तक के अन्त में लेखक ने यह कहा कि वो लोगों के सम्बंधों को मधुर बनाने और उनके चेहरों पर खुशियाँ लाने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर इसे लिख रहे थे और सबके लिए अच्छी शुभकमानओं के साथ अन्त किया है।

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