शनिवार, 21 जून 2025

इकिगाई: पुस्तक समीक्षा

पुस्तक का आवरण पृष्ठ

मैंने सम्भवतः दो वर्ष पहले इकिगाई नामक पुस्तक का नाम सुना था और भविष्य में इसे कभी पढ़ने का निर्णय लिया था। इसी वर्ष फ़रवरी माह के पहले दिन ही मैंने यह पुस्तक क्रय कर ली और सोचा था कि कभी रेलयात्रा के दौरान पढ़ूँगा। जून माह के प्रथम सप्ताह में मैंने इसे पढ़ने का निर्णय लिया और आज इसे पूर्णतः पढ़ लिया। यह हल्के नीले रंग के आवरण वाली पुस्तक है जिसपर अंग्रेज़ी में सबसे उपर बड़े काले अक्षरों में THE INTERNATIONAL BESTSELLER (अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर) लिखा है। उसके ठीक नीचे काले और श्वेत रंग में एक चित्र बना हुआ है जो किसी वृक्ष की टहनी जैसा प्रतीत हो रहा है। इसके नीचे पुस्तक का शीर्षक IKIGAI और फिर जापानी भाषा में 生き甲斐 लिखा हुआ है। ठीक इसके बाद The Japanese Secret to a Long and Happy Life (लम्बे और खुशहाल जीवन का जापानी रहस्य) एवं एकदम नीचे HÉCTOR GARCÍA AND FRANCESC MIRALLES (हेक्टर गार्सिया और फ़्रान्सेस्क मिरालेस) लिखा हुआ है। मुझे आवरण पृष्ठ पर यह सुन्दर लगा कि सबसे उपर और सबसे नीचे वाली पंक्ति के अतिरिक्त सबकुछ उपर उभरा हुआ है। पुस्तक के पिछले आवरण पृष्ठ पर भी अंग्रेज़ी में बहुत कुछ लिखा हुआ है लेकिन उसमें बार-कोड उभरे हुये हैं तथा एक चित्र (वैन-ग्राफ़) उभरा हुआ है। बार-कोड के निकट पुस्तक का मुल्य £12.99 लिखा हुआ है। यह चित्र चार वृत्तों से मिलकर बना हुआ है जिनके मध्य में अंग्रेज़ी में इकिगाई लिखा हुआ है और चारों वृत्तों में क्रमशः What you love (आपका प्यार), What you are good at (आप जिसमें अच्छे हैं), What you can paid for (आप जिसके लिए भुगतान कर सकते हैं) और What the world needs (दुनिया को क्या चाहिए) लिखा हुआ है। इसके मध्य में प्रत्येक दो वृत्तों के अंतर्वेशी स्थानों पर भी कुछ शब्द लिखे हुये हैं जो पहले दो के मध्य PASSION (भावावेश), दूसरे और तीसरे के मध्य PROFESSION (वृत्ति), तीसरे और चौथे के मध्य VOCATION (व्यवसाय) तथा चौथे और पांचवे के मध्य MISSION (ध्येय) लिखा हुआ है। यह वैन-ग्राफ़ पुस्तक के अन्दर भी पृष्ठ संख्या 9 पर भी है। पुस्तक के अन्दर के पृष्ठों की गुणवत्ता अच्छी नहीं है लेकिन सस्ते में ऐसा पृष्ठ मिलना भी अच्छा है। पुस्तक के लेखक हेक्टर गार्सिया और फ़्रान्सेस्क मिरालेस हैं और मेरे पास उपलब्ध अंग्रेज़ी अनुवाद हीदर क्लेरी (Heather Cleary) ने किया है। पुस्तक का प्रकाशक पेंगुइन रैंडम हाउस यूके है।

पुस्तक के शुरूआती पृष्ठों में पुस्तक की कॉपीराइट की जानकारी, लेखक, अनुवादक, प्रकाशक आदि की जानकारी है और इसके बाद एक जापानी कहावत लिखी हुई है, "Only staying active will make you want to live a hundred years." अर्थात् केवल सक्रिय बने रहने से ही आप सौ साल तक जीने की इच्छा रख सकेंगे। इसके पश्चात् पुस्तक में अनुक्रमणिका दी हुई है। पुस्तक का मूल भाग प्रस्तावना से आरम्भ होता है। कुछ पृष्ठ के बाद पुस्तक में वो नौ भाग/पाठ हैं जिनमें मूल सामग्री है और अंत में उपसंहार भी दिया गया है। पाँच पृष्ठ के उपसंहार के पश्चात् टिप्पणियों के नाम पर पुस्तक लिखने में काम लिए गये स्रोतों का विवरण है। इन स्रोतों में कुछ वेबसाइट और कुछ पुस्तकें भी शामिल हैं। इसके बाद आगे पढ़ने के लिए कुछ पुस्तकों का सुझाव दिया गया है जिनसे लेखक प्रभावित हैं। पुस्तक के अंतिम पृष्ठ में लेखकों के बारे में लिखा है। इसके अनुसार हेक्टर गार्सिया का जन्म स्पेन में हुआ और वो जापान के नागरीक हैं और दशकों से निवास कर रहे हैं। उन्होंने जापानी संस्कृति से सम्बंधित विभिन्न पुस्तकें लिखी हैं। दूसरे लेखक फ़्रान्सेस्क मिरालेस भी विभिन्न पुस्तकों के लेखक रहे हैं। उन्होंने यह पुस्तक लिखने से पहले जापान के सैकड़ों लोगों के साक्षात्कार किये। यदि आप पुस्तक पढ़ने में रूचि रखते हैं तो इस पुस्तक को पढ़ने का सुझाव देना चाहता हूँ।

पुस्तक की प्रस्तावना में इकिगाई को परिभाषित किया गया है। यह एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ उपर वर्णित वैन-ग्राफ़ के अनुसार है। इसे हिन्दी में "जीवन का कारण" के रूप में कह सकते हैं। वैन-ग्राफ़ के सबसे बीच के भाग को इकिगाई के रूप में वर्णित किया गया है। रहस्यमयी दुनिया में हम अपने आनन्द के कारणों को भूल जाते हैं और जल्दी ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। लेखकों के अनुसार सेवानिवृत्ति का अर्थ कार्य निवृत्ति नहीं होना चाहिए। कार्य से निवृत्ति का अर्थ अपने आप को मृत घोषित करने जैसा है।

पुस्तक के सबसे पहले पाठ में बढ़ती आयु के साथ जवान रहने का तरिका समझाने का प्रयास किया गया है। इसमें स्वयं की रूचि को पहचाने के बारे में बताया है। अपने जीवन का अर्थ खोजना चाहिए। आपके लिए कौनसा काम सबसे अच्छा है वो आपको खोजना चाहिए। इसके बाद आपको वो कार्य खोजना चाहिए जो आपको आकर्षित करता है। आप कौनसा काम करने में बेहतर हैं, प्राकृतिक रूप से आप कौनसा कार्य करने में बहुत अच्छे हैं? क्या आपको किसी कार्य के लिए धन मिलता है? उदाहरण के लिए आपको भोजन तैयार करना पसन्द हो सकता है लेकिन इसके लिए क्या आपके घर पर पैसा मिलता है? आवश्यक नहीं कि आपको अपने इस कार्य के लिए धन मिले अतः कोई ऐसा काम खोजें जिसके लिए आपको धन प्राप्ति हो सके। आपको ऐसा काम खोजना चाहिए जो अन्य लोगों के लिए उपयुक्त हो। आपके कभी कार्य-मुक्त नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी आयु वाले द्वीप के बारे में बताया गया है। इसके बाद पुस्तक में वो पाँच स्थान लिखे हैं जहाँ लोग अपने आप को व्यस्त रखते हैं और अच्छा भोजन करते हैं। इसके साथ ही उनकी आयु बहुत लम्बी होती है। पुस्तक में 80 प्रतिशत नियम के बारे में बताया है जिसके अनुसार पेट को भोजन से पूर्णतः भरने से मना किया गया है। इसके अनुसार आपको जितनी भूख हो, उससे थोड़ा कम भोजन का ही सेवन करना चाहिए। इसके बाद मोवाई लोगों के बारे में लिखा हुआ है जिनका जीवन से जुड़ाव बताया है।

दूसरे पाठ में उन छोटे-छोटे कार्यों के बारे में बताया है जो जीवन को खुशियाँ देते हैं। इसमें जीवन में अतिरिक्त वर्ष जोड़ने के बारे में लिखा हुआ है। एक खरगोस का उदाहरण देते हुये इसमें उदाहरण दिया गया है कि एक खरगोस एक निश्चित सीमा पार करते ही मर जायेगा, लेकिन उसके एक मीटर चलने पर वो सीमा कुछ सेंटीमीटर आगे खिसक जाती है, उस स्थिति में खरगोस की आयु में वृद्धि हो जायेगी। यदि यह सीमा रेखा भी उसी गति से आगे बढ़ने लग जाये जिस गति से खरगोस आगे बढ़ रहा है तो वो खरगोस अमर हो जायेगा। इस सीमा रेखा को आगे बढ़ाने के लिए आपको अपने दिमाग को सक्रिय रखना होगा और शरीर को युवा रखें। तनाव लेने से जीवन कम हो जाता है अतः तनाव से दूर रहने के बारे में भी लिखा गया है। तनाव कैसे काम करता है यह भी इसमें समझाया है और इसके लिए गुफाओं में रहने वाले मानव और वर्तमान मानव के मध्य तुलना भी दी गयी है। तनावमुक्त रहने के लिए कैसे दिमाग को तैयार करें? इस पाठ के अनुसार तनाव का अल्प मात्रा में होना भी आवश्यक है अन्यथा हम बहुत आलसी हो जायेंगे। एक ही जगह लम्बे समय तक बैठे रहने से भी आयु जल्दी बढ़ती है अर्थात् हम बुड्ढ़े हो जाते हैं। इस पाठ के अनुसार आपकी त्वचा आपकी आयु को दिखाती है। त्वचा को जवान रखने के लिए आपको 9 से 10 घंटे तक सोना चाहिए और अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखना चाहिए। आयु को बढ़ने से रोकने का क्या तरिका है और लम्बे जीवन के लिए कविता भी लिखी है।

पुस्तक के तीसरे पाठ में लोगोथेरेपी के बारे में लिखा है। इसमें जीवन में उद्देश्य खोजने के बारे में लिखा है। इसमें एक मनोवैज्ञानिक के बारे में लिखा है जो अपने मरीज को सबसे पहले पूछता है कि आप आत्महत्या क्यों नहीं करना चाहते और यहाँ रोगी कुछ अच्छे कारण खोज लेता है। लेकिन लोगोथेरेपी में व्यक्ति को इस तरह के प्रश्नों की आवश्यकता नहीं होती और वो सरलता से अपने कारण खोज लेते हैं। इस तरह आपको अपने जीवन में कारण खोजने चाहिए जो आपके लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और लोगोथेरेपी में अंतर स्पष्ट किया गया है। इस पाठ में अपने लिए लड़ने के बारे में बताया गया है जिससे आप अपना महत्त्व समझ सको। इसके लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दू भी दिये गये हैं। इसके बाद इसमें कुछ विशिष्ट प्रकरण अध्ययन दिये गये हैं। इसी पाठ में आगे मोरिता थेरेपी के बारे में बताया है। यह बौद्ध धर्म के एक अनुयायी शोमा मोरिता द्वारा खोजी गयी चिकित्स के बारे में बताया गया है। इसमें मोरिता थेरेपी के मूलभूत सिद्धान्तों के बारे में बताया है जिसके अनुसार सबसे पहले हमें अपनी भावनाओं को स्वीकार करना चाहिए। इसके बाद हमें वो करना चाहिए जो हम करना चाहते हैं और जीवन में कोई उद्देश्य खोजना चाहिए। मोरिता थेरेपी के चार चरण भी दिये हैं जिनके अनुसार पहला चरण पांच से सात दिन तक एकदम सभी से अलग और आराम से रहने के बारे में बताया है। सबसे अलग का अर्थ टेलीविजन, पुस्तक, दोस्त, परिवार और उन सभी उपकरणों से दूर रहने के लिए कहा गया है जिनका ध्वनि या बोलने से सम्बंध हो। अगले चरण में एक सप्ताह के लिए शांति से कुछ पुनरावृत्ति वाले कार्य करने के लिए लिखा गया है। तीसरे चरण में एक सप्ताह के लिए शारीरिक गतिविधि वाले कार्य करने के लिए लिखा गया है। इसके बाद चौथे चरण में वापस सामान्य जीवन जीने के बारे में कहा गया है। इसके बाद इसी पाठ में नैकान ध्यान के बारे में लिखा गया है और अंत में इससे इकिगाई से जोड़कर बताया गया है।

पुस्तक के चौथे पाठ में सभी कार्यों की निरंतरता के बारे में लिखा गया है। इसमें बताया गया है कि आप अपने कार्य के समय और मुक्त समय को अपनी संवृद्धि में कैसे शामिल कर सकते हैं। इस पाठ के शुरूआत में बताया गया है कि जब आप स्कीयन (skiing) का उदाहरण दिया है। मैं इस उदाहरण को एक कार चालक या सायकिल चलाने वाले से जोड़कर कह सकता हूँ क्योंकि मैंने कभी स्कीयन नहीं किया। जब कार चलाते हैं तब हमारा ध्यान उसी समय और सामने होता है। कार चलाने से जो धूल उड़ रही है उसपर ध्यान नहीं देते और यदि उसे देखने लग गये तो दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। ठीक उसी तरह जीवन में आपको इसी समय को देखना चाहिए। अपने जीवन में प्रवाह होना चाहिए और इसे प्राप्त करने के लिए आपको स्वयं के बारे में जानना चाहिए, यह भी जानना चाहिए कि जो करना चाहते हैं वो कैसे कर सकते हैं, कितना अच्छे से कर सकते हैं आदि। आपको कठिन कार्य चुनने चाहिए लेकिन इतने कठिन भी नहीं कि वो असम्भव हों। किसी काम को करने से पहले हमें इसके बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि हमारा उद्देश्य क्या है? हमें एक साथ बहुत काम नहीं करने चाहिए। एक साथ कई काम करने से समय बर्बाद होता है और हम किसी एक काम को भी ढ़ंग से नहीं कर पाते। जापान में निरंतरता के बारे में लिखा गया है जिसमें बताया गया है कि जापान के लोग कैसे अपना उद्देश्य खोजकर उसके साथ चलते हैं। इसमें ताकुमी कला के बारे में बताया गया है कि कैसे कुछ स्क्रू (कील) जापान के कुछ लोग अपने हाथ से बनाते हैं और इसमें उनकी निपुणता बहुत अधिक है। अमेरिकी व्यापारी स्टीव जॉब्स के जापान यात्रा के बारे में लिखा गया है। इस पाठ में आलसी सरलता और कार्य की पूर्ण जानकारी के साथ सरलता के बारे में लिखा गया है। इसी पाठ में जिबली (Ghibli) की शुद्धता के बारे में भी लिखा गया है। इसके आगे इसमें विरक्ति के बारे में लिखा गया है कि विश्व में ऐसे विभिन्न लोग रहे हैं जिन्होंने मरते दम तक अपने इकिगाई को खोजकर उसके अनुसार ही कार्य किया। सांसारिक कार्यों का आनन्द लेने का तरिका भी यहाँ लिखा गया है। ध्यान के माध्यम से लघु अवकाश कैसे लें यह भी इसमें लिखा गया है। मानव कर्मकांडी होता है अतः हमें धार्मिक अथवा संस्कारी कार्यों में भी भाग लेना चाहिए जिससे हम लोगों से जुड़ेंगे और खुशियाँ बढ़ेंगी। इकिगाई के माध्यम से जीवन में निरंतरता प्राप्त करने के बार में भी लिखा है।

पाँचवे अध्याय में दीर्घायु लोगों के बारे में लिखा है। इसमें लम्बे जीवन जीने वाले कुछ लोगों के जीवन को लिखा गया है। मिसावो ओकावा (117 वर्ष) के बारे में लिखा है कि उनके अनुसार अच्छा भोजन और लम्बी नींद दीर्घायु होने का राज है। मारिया कैपोविला (116 वर्ष) के अनुसार उन्होंने अपने जीवन में कभी मांसाहार का सेवन नहीं किया। ज्यां कैल्में (Jeanne Calment) (122 वर्ष) ने 120वें जन्मदिन पर कहा था कि वो अच्छे से सुन नहीं सकती, अच्छे से देख नहीं सकती, बुरा महसूस करती हैं लेकिन सबकुछ अच्छा है। वाल्टर ब्रूनिंग (114 वर्ष) के अनुसार आप अपने शरीर और दिमाग को व्यस्त रखोगे तो आप दीर्घायु होने में सफलता प्राप्त करोगे। अलेक्जेंडर इमिच (111 वर्ष) के अनुसार उन्हें उनके दीर्घायु होने का कारण ज्ञात नहीं था। माउंट फुजी ने अपने सौंवे जन्मदिन पर बतया कि उन्होंने 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक कुछ खास नहीं किया लेकिन इसके बाद प्रकृति को समझा और उसके अनुसार ढ़लते चले गये।

छठे अध्याय में जापन में जीवन का शतक लगा चुके लोगों के बारे में है जिसमें जापान के लोगों की खुशियों और दीर्घायु होने का कारण वहाँ की परम्पराओं और कहावतों को कहा है। इसमें जापान के ओगिमी नामक एक गाँव का उल्लेख है। लेखक ने इस दूरस्त गाँव में पहुँचने के अपने अनुभव साझा किये हैं। वहाँ गाँव के सामाजिक जीवन का उल्लेख किया गया है जो भोजन से भी जुड़ा हुआ है। लेखक ने एक जन्मदिन का उत्सव मनाने का उल्लेख किया जिसमें सबसे युवा व्यक्ति 83 वर्ष का था। उस गाँव में सभी लोग प्रत्येक दिन को एक उत्सव की तरह मनाते हैं। यह गाँव ओकिनावा नामक प्रांत में स्थित है अतः लेखक ने आगे इस प्रान्त में प्रचलित धर्मों के बारे में बताया और जिससे वहाँ के लोगों के रहन-सहन का धर्म से सम्बंध समझा जा सके। यहाँ लोग अपना जीवन शांति से व्यतीत करते हैं। लेखक ने यहाँ नौ सौ लोगों का साक्षात्कार किया जिसमें उन्होंने प्रेक्षित किया कि वहाँ के लोगों के अनुसार हृदय को जवान रखने के लिए आवश्यक है कि आप मुस्कराते हुये लोगों से मिलो। अच्छी आदतों को अपने जीवन में जोड़ो। हमेशा अपने दोस्तों का साथ निभावो। जीवन को दौड़ की तरह समझने की आवश्यकता नहीं है। जीवन में आशावादी रहो।

सातवें अध्याय में इकिगाई आहार के बारे में लिखा गया कि दीर्घायु लोग क्या खाते हैं और क्या पीते हैं। इस पाठ के पहले ही पृष्ठ में सन् 1960 से 2000 तक जापानी प्रान्त ओकिनावा, जापान, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका में जीवन प्रत्यासा के बढ़ने का आरेख को दिखाया है इसके अनुसार ओकिनावा हमेशा ही अन्य स्थानों से आगे रहा है। इसमें ओकिनावा चमत्कारी आहर के बारे में लिखा गया है। इसी अध्याय में हारा हाची बु के नाम पर 80 प्रतिशत वाला नियम पुनः दोहराया गया है। इसमें बताया गया है कि लोग भोजन के बाद मिठा खाते हैं लेकिन लम्बे जीवन के लिए इस आदत को बदलना चाहिए और मिठाई को बंद कर देना चाहिए। यदि बंद नहीं कर सकते तो कम करना चाहिए। इसके अगले भाग में उपवास के महत्त्व को समझाया गया है। ओकिनावा के आहार में 15 प्रति-उपचायकों के बारे में लिखा गया है। इसके पश्चात् सैंपिन चाय के बारे में लिखा है जो 15 प्रति-उपचायकों में से एक है। सैंपिन चाय हरी चाय और चमेली के फुलों के मिश्रण से बनती है। इसके लाभ यहाँ लिखे गये हैं। इसके बाद शिकुवासा नामक एक खट्टे फल का विवरण है।

आठवें अध्याय में सौम्य अथवा कोमल गतिविधियों के बारे में बताया गया है जो पूर्व (पूर्वी देशों) से हमें मिली हैं। इस अध्याय के अनुसार दीर्घायु लोग वो नहीं हैं जो बहुत अधिक कसरत/अभ्यास करते हैं बल्कि वो हैं जो लगातार कोई न कोई गतिविधि करते रहते हैं। इस पाठ में योग रेडियो ताइसो, योग, थाई ची, चीगोंग (Qigong) और शियात्सु के बारे में लिखा गया है। इन सभी को पहले बताया गया है कि यह गतिविधि मूल रूप से कहाँ की है? इसको करने के कितने माध्यम हैं? इसके बाद प्रत्येक के साथ किसी एक विधि को अच्छे से चित्रित रूप में समझाया गया है। इन चित्रों को देखकर इसे आसानी से समझा जा सकता है। ये कठिन कार्य नहीं है बल्कि किसी भी आयुवर्ग का कोई भी व्यक्ति इन्हें दोहरा सकता है। ये साँस लेने का तरिका है जो जीवन को दीर्घायु बनाता है।

नौंवे अध्याय लचीलापन और वबी-सबी में तनाव और चिंता रहित जीवन की चुनौतियों का सामना करने के बारे में लिखा गया है। इसमें पहले जीवन में लचीलापन रखने के बारे में लिखा गया है। यहाँ बौद्ध और स्टोइक दर्शन के बारे में लिखा गया है। पहले बौद्ध धर्म के बारे में लिखा गया है जिसके अनुसार कपिलवस्तु में धनाढ़य परिवार में जन्मे और पालन-पोषण के बाद गौतम बुद्ध ने घर छोड़ दिया और अपने आप को कठिन स्थित में डाला लेकिन बाद में उन्हें समझ में आया कि यह मार्ग उनके लिए नहीं है अतः उन्होंने बाद में मध्यम मार्ग निकाला। इसी तरह उन्होंने स्टोइक दर्शन के बारे में बताया है और उनके मूल से उन्हें समझाने का प्रयास किया है। इसके आगे लेख में उस स्थिति का वर्णन किया है कि जीवन में सबसे खराब स्थिति क्या हो सकती है और उसका सामना कैसे करें। स्टोइक दर्शन के अनुसार स्वस्थ भावनाओं के लिए ध्यान देने को समझाया है। बौद्ध एवं स्टोइक दर्शन दोनों में ही वर्तमान में रहने पर ध्यान दिया गया है न कि भूतकाल या भविष्य को लेकर परेशान होना। इसके बाद जापानी अवधारणा वाबी-साबी और इचिगो इचीई के बारे में बताया है जिसके अनुसार केवल यह समय ही सर्वश्रेष्ठ है और हमें केवल वर्तमान में जीना चाहिए। इसके बाद लचीलापन से आगे एंटीफ्रैगिलिटी अर्थात् प्रति-भंगुरता के बारे में लिखा गया है। यहाँ हाइड्रा की अवधारणा के बारे में बताया गया है जिसके अनुसार उसका एक सिर काटने पर वो दोगुणा ताकत के साथ दो रूप में अवतरित हो जाता है। इसी तरह अपने जीवन में नकारात्मक अवधारणायें बढ़ती हैं और इनसे छुटकारा कैसे प्राप्त करें, इसके बारे में बताया गया है। इस कार्य को तीन चरणों में पूरा करने का तरिका बताया है।

    आवरण पृष्ठ का पिछला भाग

    उपसंहार में बताया है कि सभी का इकिगाई अलग-अलग होता है और हमें अपना इकिगाई स्वयं को पहचानना होता है। इसके लिए ओगिमी के इकिगाई के दस नियम लिखे गये हैं जो निम्नलिखित हैं:

    1. सक्रिय रहो, कार्य मुक्त न हों
    2. धीमे रहो, जल्दबाजी से मुक्त रहो
    3. पेट को पूरी तरह मत भरो
    4. अच्छे दोस्तों के साथ रहो
    5. अपने अगले जन्मदिन के लिए तैयार रहो
    6. मुस्कराहट साथ में रखो
    7. प्रकृति से जुड़े रहो
    8. अपनी प्रत्येक साँस के लिए अपने पूर्वजों और प्रकृति को धन्यवाद दो
    9. वर्तमान समय का आनन्द लो और
    10. अपने इकिगाई का अनुशरण करो।

    कुल मिलाकर मुझे पुस्तक बहुत अच्छी लगी।

    शनिवार, 7 जून 2025

    द आर्ट ऑफ़ लेज़ीनेस: पुस्तक समीक्षा

    एक श्वेत चित्र जिसमें सबसे उपर OVERCOME PROCRASTINATION & BOOST YOUR PRODUCTIVITY लिखा है। बीच में बड़े अक्षरों में THE ART OF LAZINESS लिखा है और एकदम नीचे Library Mindset लिखा है।
    पुस्तक के आवरण का चित्र

    पिछले रविवार को मैंने कुछ पुस्तकें क्रय की उनमें से एक छोटी सी पुस्तक द आर्ट ऑफ़ लेज़ीनेस (The Art of Laziness) क्रय की। द आर्ट ऑफ लेज़ीनेस को हिन्दी में आलस्य की कला कह सकते हैं। सामान्य श्वेत वर्ण के आवरण वाली इस पुस्तक पर सबसे उपर पीले अक्षरों में लिखा हुआ है : Overcome procrastination & boost your productivity (टालमटोल पर काबू पायें और अपनी उत्पादकता बढ़ायें) और इसके प्रकाशक लाइब्रेरी माइंडसेट है। लगभग 120 पृष्ठ की यह पुस्तक लगभग एक घंटे से दो घंटे के बीच में पूरी पढ़ी जा सकती है। हालांकि मुझे पढ़ने में कई दिन लगे। मैंने पुस्तक का शुरूआती एक तिहाई भाग आराम से पढ़कर आनन्द लेने में किया लेकिन आज मैंने इसे पूर्ण करने का निर्णय किया और पूरा पढ़ भी लिया। वैसे तो पुस्तक में मुझे कुछ भी नया नहीं मिला और जो कुछ मिला वो ज्ञान मैं भी अलग-अलग समय पर लोगों को दे चुका हूँ लेकिन इतनी सभी बातें एकसाथ लिखी देखकर मुझे अच्छा लगा। पुस्तक में वर्तमान के विभिन्न सफल लोगों के उद्धरण भी लिखे हुये हैं।

    पुस्तक के शुरू में एक उद्धरण पाउलो कोइल्हो का लिखा हुआ है। यह देखते ही मुझे द एल्केमिस्ट नामक पुस्तक याद आ गयी। यहाँ लिखे वाक्य का हिन्दी अनुवाद मुझे इस तरह समझ में आया: एक दिन आप उठोगे और तब आपके पास उन कार्यों के लिए बिलकुल भी समय नहीं होगा जो आप करना चाहते थे। अभी करो।

    पुस्तक दो भागों में है और पहले भाग में पुस्तक में यह दिखाया है कि हम अपनी टालमटोल की नीति के चलते कैसे समय बर्बाद करते हैं जबकि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। जीवन बहुत छोटा है और अपना समय बर्बाद करने की जिम्मेदारी अपनी स्वयं की होती है। हमें गलत लोगों के आसपास नहीं रहना चाहिए और अपना सबसे बड़ा दुश्मन अपना स्वयं का सुविधाभरा समय है जिससे हम बाहर नहीं आते। पहले वो काम करो जो हमें मुश्किल लगते हैं। अपने आप को पूर्णतावादी बनाने की न सोचें और औसत दर्जे के व्यक्ति न बनें। एक साथ विभिन्न कार्य करने से अपनी उत्पादकता घटती है। अपनी दिनचर्या तैयार करें और लोगों को ना कहना सीखें। सातों दिन चौबीस घंटे काम न करें बल्कि अपने परिवार और दोस्तों को समय दें। रुकें नहीं, चिंता न करें, स्वयं से आप वो काम करें जिनमें लाभ अधिक हो जबकि हल्के काम दूसरों से करवा लें चाहे वो आपसे कम गुणवता का काम करके दे रहे हों।

    पुस्तक के दूसरे भाग में कुछ पृष्ठ हैं जिनमें युक्तियाँ और तकनीकें लिखी गयी हैं। इनमें पिग्मेलियन प्रभाव, 80/20 नियम, आलस्य से बाहर आने की जापानी तकनीक, जीवन को बदलने वाली 10 सरल आदतें, पोमोडोरो तकनीक और दो दिन के नियम बताये गये हैं। इसके बाद पुस्तक में कुछ स्रोत दिये हैं।

    पुस्तक मुझे पढ़ने में अच्छी लगी। पहले मैंने सोचा था कि पुस्तक को पढ़कर किसी अन्य व्यक्ति को दे दूँगा लेकिन अब ऐसे लग रहा है कि मुझे यह पुस्तक हमेशा मेरे साथ रखनी चाहिए। हालांकि मैं क्या निर्णय लूँगा ये तो समय ही बतायेगा।

    बुधवार, 4 जून 2025

    रेत समाधि

    गहरे नीले रंग का चित्र जिसमें कुछ तितलियाँ हैं, कुछ पौधे लगे गमले हैं, कुछ चिड़िया हैं और उन सभी के मध्य एक महिला छड़ी उठाये खड़ी है।
    पुस्तक के कवर का चित्र

    गीतांजलि श्री की पुस्तक रेत समाधि के अंग्रेज़ी अनुवाद टॉम्ब ऑफ़ सेंड (Tomb of Sand) को सन् 2022 का अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला। यह साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाला एक बहुत बड़ा पुरस्कार है। हालांकि नोबेल पुरस्कार इससे कहीं उपर है लेकिन यह पहली हिन्दी पुस्तक है जिसको इतना बड़ा पुरस्कार मिला। मेरा मन भी यह खबर सुनकर पढ़ने का किया। मैंने पहले इसकी ऑनलाइन प्रतिलिपि खोजी लेकिन उसे पढ़ने में मजा नहीं आया। इसके बाद सन् 2022 के उत्तरार्द्ध में मैंने ऑनलाइन यह पुस्तक क्रय कर ली। मैंने जो पुस्तक क्रय की उसका कवर गहरे नीले रंग का है जिसमें कुछ तितलियाँ हैं, कुछ पौधे लगे गमले हैं, कुछ चिड़िया हैं और उन सभी के मध्य एक महिला छड़ी उठाये खड़ी है। पुस्तक के पिछले आवरण पर भी गहरा नीला रंग है वहाँ भी कुछ नक्काशी मिलती है। वहाँ गीतांजलि श्री का एक छोटा चित्र भी है और साथ में राजकमल प्रकाशन का नाम भी लिखा है। यहाँ आवरण परिकल्पना का श्रेय अनिल आहूजा को दिया गया है। सम्भवतः मेरे पास जो उपलब्ध सस्ती पुस्तक का आवरण पृष्ठ है।

    लेखिका का नाम "गीतांजलि श्री" है जो मैंने पहले या तो कभी नहीं सुना था या फिर याद नहीं था और इसका कारण साहित्य की पुस्तकें बहुत कम पढ़ना हो सकता है। गीतांजलि श्री के नाम में "श्री" उनकी माँ का नाम है जो गितांजलि ने अपने उपनाम के रूप में स्वीकार किया। है। गीतांजलि श्री इतिहास की छात्रा रही हैं और वो विभिन्न हिन्दी लेखकों और कवियों को अपना आदर्श मानती हैं जिनमें कृष्णा सोबती, निर्मल वर्मा हैं। वो पाकिस्तान के प्रसिद्ध लेखक इंतज़ार हुसैन का भी नाम चर्चा में लाती हैं। श्रीलाल शुक्ल और विनोद कुमार शुक्ल की भी वो प्रशसंक हैं। इन सभी का नाम रेत समाधि पुस्तक में भी शामिल है। इस पुस्तक के बारे में ऑनलाइन कुछ समीक्षायें उपलब्ध हैं जिनमें से एक रवीश कुमार की समीक्षा भी शामिल है। जो भी हो, मैंने पुस्तक को पढ़ा है अतः मेरी अपनी समीक्षा है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद डेज़ी रॉकवेल ने किया। डेज़ी का एक हिन्दी साक्षात्कार मैंने बीबीसी हिन्दी पर सुना था जिसमें मैं सोचता रह गया कि डेज़ी रॉकवेल हिन्दी समझ लेती हैं और बोल भी लेती हैं। आवश्यक रूप से बिना हिन्दी की जानकारी के अच्छा अनुवाद सम्भव नहीं है। हालांकि उनका हिन्दी उच्चारण अंग्रेज़ी जैसा ही प्रतीत होता है।

    मुझे पुस्तक में सबसे अच्छी बातें ये लगी की इसमें हिन्दी साहित्य के विभिन्न लेखकों का उल्लेख है। पुस्तक की भाषा आम बोलचाल की भाषा की तरह है जिसमें वाक्य कहीं भी पूरा हो जाता है और लम्बा भी हो जाता है। शब्द अलग-अलग रूप में बार-बार भी आते हैं और उनके प्रचलन और पुराने नाम भी साथ-साथ आते हैं। उदाहरण के लिए एलोवीरा भी लिखा है और अगले ही वाक्य में कह दिया कि इसे पहले में ग्वारपाठा कहते थे। मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन्होंने घृतकुमारी शब्द क्यों नहीं डाअला। कहीं फल लिखा है तो फ्रुट भी मिल जायेगा। बोलते समय कई बार जैसे शब्दों और वाक्यों की आवृत्ति होती है, वो भी यहाँ देखने को मिलती है। पुस्तक में वो शब्द भी मिलते हैं जो राजस्थान और मध्य प्रदेश में स्थानीय तौर पर बोले जाते हैं लेकिन हिन्दी में कम ही देखने को मिलते हैं। यदि ढ़ंग से इस पुस्तक को पढ़ा जाये तो आपकी हिन्दी शब्दावली में बहुत विस्तार हो जायेगा। पुस्तक में सामान्य प्रचलन में आ गये अंग्रेज़ी शब्दों को भी देवनागरी में लिखा है। इसमें वो वृद्ध महिल के पोते को उसके आधुनिक नाम सिड के रूप में ही लिखा है जिसका सम्भावित सही नाम सिद्धार्थ या कुछ और है जो मुझे अब याद नहीं है। पुस्तक में कई जगह वो प्रचलित कहानियाँ भी हैं जो बचपन से मैंने सुनी हैं लेकिन उन्हें थोड़ा अलग रूप दे दिया है। उदाहरण के लिए परम्परा के नाम पर बंदरों पर प्रयोग की कथा सभी ने सुनी होगी जिसमें एक पिंजरे में बंद बंदरों से कुछ उपर केले रखे हैं लेकिन कोई भी बंदर केले लेने जाता है तो सभी पर गर्म पानी डाला जाता है। इस तरह उन्हें केलों से डरा दिया जाता है। इसके बाद एक-एक करके सभी बंदर बदल दिये जाते हैं लेकिन केलों की तरफ कोई बंदर नहीं जाता। उनपर गर्म पानी गिरना भी बंद हो चुका है लेकिन उनके लिए ये परम्परा का हिस्सा बन चुका है। लेकिन उपरोक्त पुस्तक में इसे एक छोटी चिड़िया की कहानी बना दी गयी है जिसमें वो एक शिकारी पर भरोसा करती है और उछलती रहती है लेकिन ज्यों ही शिकारी उसका शिकार करता है, चिड़िया के लिए मनुष्यों से डरना एक परम्परा बन गयी। भले ही अधिकतर मनुष्य चिड़िया के साथ बुरा व्यवहार नहीं करते। हालांकि पुस्तक के कुछ शब्द मैं समझ नहीं पाया क्योंकि वो मेरे लिए नये हैं और मैंने उन्हें किसी शब्दकोश में खोजकर समझना नहीं चाहा।

    मैंने पुस्तक को सन् 2023 में कभी पढ़ना आरम्भ कर दिया था। सोचा था कि कभी यात्रा के दौरान पढ़ुँगा लेकिन मुझे मजा नहीं आ रहा था। इसका एक मुख्य कारण ध्यान से नहीं पढ़ना था। मैं जब भी पुस्तक पढ़ने बैठता हूँ, मुझे कुछ ऐसा मिल जाता है जो मुझे मेरे बचपन, गाँव और नौकरी की याद दिला देता है। उसके बाद मैं पुस्तक के कुछ पृष्ठ तो पढ़ लेता हूँ लेकिन पुस्तक के बाहर निकल जाता हूँ। इसका कारण बहुत वर्षों बाद हिन्दी पुस्तक पढ़ना भी एक कारण है। इससे पहले मैंने मोहन राकेश का नाटक "आषाढ़ का एक दिन" था जो सन् 2021 में मैंने एक दिन बैठे-बैठे पढ़ लिया था। उस दिन मैं मेरे किसी प्रिय के मकान पर था और वहाँ ही वो नाटक मुझे मिला था। लेकिन वो नाटक था जिसमें हर एक दृश्य को पूरी तरह उकेरा गया था लेकिन इस पुस्तक में कहानी थी, उसकी पृष्ठभूमि भी थी लेकिन पिछे का दृश्य स्वयं को बनाना था। यह उपन्यास है न कि नाटक। उपन्यास का अर्थ ही यह है कि यहाँ एक मुख्य कहानी होगी, उसके साथ बहुत अन्य कहानियाँ होंगी, कुछ आरम्भ होंगी और कुछ का अंत होता है, कुछ वापस निकल आती हैं तो कुछ सदा के लिए रुक जाती हैं। इस तरह मैंने इसे पढ़ने में निरंतरता नहीं रखी। मैंने फ़रवरी 2025 तक लगभग आधी पुस्तक को पढ़ लिया जो मेरी पढ़ने की धीमी गति को दिखाने के लिए स्पष्ट था। इसी समय मैं हिन्दी साहित्य से जुड़े कुछ लोगों के साथ चर्चा की जिसमें तिवारी जी और उनके मित्र शामिल हैं। उन्होंने मुझे बताया कि यदि पुस्तक को पढ़ने में मजा नहीं आ रहा तो मुझे छोड़ देना चाहिए। लेकिन मैं ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था अतः मैने जल्दी से पुस्तक को पूरा करने का निर्णय लिया हालांकि फिर भी असफल ही रहा। इसी बीच अंग्रेज़ी में लिखी दो छोटी पुस्तकें पूर्ण कर ली। मई 2025 के अंतिम रविवार को 40 किलोमीटर दूर एक मित्र ने अपने घर बुलाया था। रास्ते में रेलगाड़ी से यात्रा करनी थी और इसमें एक अन्य मित्र भी साथ में था। हालांकि आज की यात्रा में मैंने बातें करने के स्थान पर पुस्तक पढ़ना उचित समझा और सम्बंधित मित्र ने भी इसमें किसी तरह की नाराजगी व्यक्त नहीं की। रास्ते में मैंने उसे भी कुछ भाग पढ़ाये। यहाँ एक पात्र का नाम भी उस मित्र के नाम वाला था। हालांकि वो पात्र उस बुजुर्ग महिला की बेटी के प्रेमी/पति का नाम है। इस यात्रा के दौरान मैंने पुस्तक के करीब 30 पृष्ठ पढ़ डाले और यहाँ से पढ़ने का मजा ही बदल गया। मैंने आगे पुस्तक को मई माह में ही पूर्ण करने का सोचा लेकिन समय की व्यस्तता ने ऐसा नहीं होने दिया। आखिर आज मैंने पुस्तक को पूरा कर लिया और यह समीक्षा लिखना आरम्भ कर दिया है।

    पुस्तक में मुख्यतः तीन भाग हैं और चौथा छोटा सा भाग भी है। पीठ नामक पहले अनुभाग में हर कहानी या किस्से की शुरूआत चार पतियों के एक चित्र से होती है। धूप नामक दूसरे भाग में हर किस्से कहानी की शुरूआत में एक चिड़िया/कौवा बना हुआ है। हद-सरहद नामक तीसरे अनुभाग में हर किस्से की शुरुआत एक पहाड़ी के चित्र से होती है। अंत में उपसंहार लिखा है जो कहानी पूरी होने के बाद के लोगों के बुढ़े होने की है।

    पहले भाग में एक बुजुर्ग महिला का परिचय होता है जो अपने बिस्तर पर चिपकी रहती है। उसके घर में उसका ध्यान रखते हैं, लेकिन ये बुजुर्ग महिला केवल अपने में खोई है। कहानी इसी महिला के ईर्द्ध-गिर्द्ध घुमती है। पात्रों से परिचय होता है जो महिला के इधर-उधर घुमते हैं, बातें करते हैं और ध्यान रखते हैं। लेकिन कहानी तो यहाँ अलग ही थी, महिला एकदिन गायब हो जाती है और सभी सोचते रह जाते हैं कि सबके बीच से महिला कहाँ गायब हो गयी? ध्यान कैसे नहीं रखा गया? सभी आनन-फानन में बुजुर्ग महिला को खोजने लगते हैं। यह बुजुर्ग महिला विधवा है और जब से विधवा हुई है तब से वो कुछ अलग ही रूप में खो गयी है। किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो दूसरों के सहारे से बिस्तर छोड़ पाती थी वो ऐसे कहाँ गुम हो गयी। हालांकि बहुत खोजने पर वो बहुत दूर नगर में कहीं मिलती है। उसे अस्पताल भी पहुँचाते हैं और समस्या नहीं होने पर कहानी आगे बढ़ती है।

    दूसरे भाग में मुख्यतः महिला को उसकी बेटी अपने घर लेकर चली जाती है और वहाँ अलग ही माहौल है। यहाँ कई कहानियाँ चलती हैं। बुजुर्ग महिला भी खूब खुलकर अपने आप को सम्भालती है। यहाँ रोज़ी कहाँ से आ जाती है यह तो मैं भूल गया लेकिन रोज़ी कहानी में बहुत बड़ी पात्र बन जाती है। बेटी अपनी बुजुर्ग माँ को घर में हर तरह से सुख-सुविधा देने का प्रयास करती है और उसमें स्वयं का भी पूरा ध्यान नहीं रख पाती है। जबकि माँ (बुजुर्ग महिला) अपने आप को यहाँ आज़ाद करती रहती है। यहाँ पर कौवों के एक सम्मेलन का चित्रण भी आता है जो मनुष्यों द्वारा किये जा रहे बड़े सम्मेलनों पर कटाक्ष की तरह लगा। कहानी यहाँ अच्छे से बढ़ रही होती है लेकिन रोज़ी को जब रज़ा दर्जी के रूप में बेटी देखती है और उसके अन्य बहुत रूप भी देखती है तो वो समझ ही नहीं पाती कि चल क्या रहा है? लेकिन माँ है कि उसे इससे फर्क नहीं पड़ रहा कि वो रोज़ी है या रज़ा टेलर या कोई और। वो सभी तरह से खुश है। गज़ब बदलाव रज़ा उर्फ़ रोज़ी की मौत हो जाती है और बुजुर्ग महिला पुनः ऐसे चुप हो जाती है जैसे सबकुछ खत्म हो गया। आखिर बेटी के विभिन्न प्रयासों के बाद माँ अपने आप को वापस वर्तमान में लाती है। एक चिकित्स्कीय समस्या दिखाती है जिसका चिकित्सकों से इलाज करवाया जाता है लेकिन यहाँ पर बुजुर्ग महिला अपनी वो मांग रख देती है जो किसी ने सोचा भी नहीं था। यह था सरहद पार जाना अर्थात् पाकिस्तान जाना। बेटी समझती है कि रोज़ी की याद में ऐसा कर रही है अतः कुछ दिन नाटक कर लेते हैं, वैसे भी वीज़ा तो मिलेगा नहीं।

    तीसरा भाग सरहद आरम्भ हो जाता है। पासपोर्ट के साथ माँ पाकिस्तान चली जाती है वीज़ा के बिना ही। बेटी को भी साथ ले जाती है। यहाँ कहानी उसके बचपन की आ जाती है जिसमें रोज़ी के रूप में वो छोटी बच्ची भी है। माँ की वो कहानी भी जो उसने भारत के विभाजन के कारण सही थी। विभाजन एक काल्पनिक रेखा है जिसको माँ नहीं मानती है। बेटी पहले समझती है कि माँ को ये सबकुछ रोज़ी ने रटाया था लेकिन माँ को सबकुछ इतना अधिक याद है कि रोज़ी इतना कुछ नहीं सिखा सकती। अंत में बुजुर्ग महिला अपने अंत की तैयारी करती है जिसमें वो गोली लगने पर भी उल्टी नहीं गिरना चाहती और ऐसा ही करती है। उसका प्रेमी ही शायद गोली चलाता है लेकिन मानता नहीं है। साथ में कौवे की प्रेमकहानी भी जोड़ी है जो धर्म के अनुसार यहाँ अलग पंछी तीतर से जोड़ी गयी है। तीतर भी मर जाता है लेकिन कौवा उसे भी बुजुर्ग महिला के साथ जोड़ता है। यहाँ सरहद पार बेटी को भी अपना प्रेमी याद आता है। वो भी कैद में परेशान होती है और हर वो प्यारी बात याद करती है जिसे पिछले कुछ समय से वो भूल ही गयी थी। यहाँ तो मुझे कहानी इतनी मजेदार लगने लग गयी थी कि पुस्तक पूरी पढ़ने का हमेशा मेरा मन करने लगता है और मैं मोबाइल में रील देखने के स्थान पर आजकल पुस्तक पढ़ रहा हूँ। मैं जब पुस्तक पढ़ता हूँ तब न ही मोबाइल की आवाज अच्छी लगती है और न ही किसी का फोन आना। हालांकि कुछ मजबूरियों के चलते अन्य स्थानों पर भी समय देना आवश्यक है अन्यथा मुझे लगता है कि पुस्तक मई माह में पूरी हो गई होती।

    उपसंहार में कुछ वर्ष बाद की बात है जिसमें न माँ है और न ही बेटी। उसमें हैं बड़े (बुजुर्ग महिला का बड़ा बेटा) उसकी पत्नी, और पौते-पौतियाँ, बहुयें आदि। आयु बढ़ने के साथ उनके भी आगे बढ़ते किस्से।

    पुस्तक के आवरण पृष्ठ के पिछले भाग पर लिखे शब्दों का मर्म पुस्तक पढ़ने के बाद ही अच्छे से समझ में आता है। ये पंक्तियाँ भी मैं यहाँ लिख रहा हूँ:

    अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ पर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी।

    फिर इन्हीं शब्दों को ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।

    कथा लेखन की एक नई छ्टा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-अरिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी और जादूई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवदी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं 'क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर', और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।

    और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : 'धम्म से आँसूगिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।'

    समय मिलने पर इस पुस्तक का अंग्रेज़ी संस्करण भी पढ़ना चाहूँगा जिससे यह समझ सकूँ कि अनुवाद कैसे किया जाता है और एक अच्छा अनुवाद कैसे मूल अनुवाद से समानता और भिन्नता रख सकता है।

    रविवार, 30 मार्च 2025

    द गर्ल विद नो ड्रीम्स: पुस्तक समीक्षा

    पुस्तक का कवर चित्र, जिसमें गहरे लाल रंग की स्वेटर पहने एक युवती के बड़े लम्बे सुनहरे रंग के बाल दिखाई दे रहे हैं। युवती का गौरा रंग भी दिखाई देता है लेकिन चेहरा नहीं दिखाई देता। चित्र में उपर अंग्रेज़ी में छोटे अक्षरों में व श्वेत रंग में "A Story about Dreams, Hope and Death" लिखा है। उसके ठीक नीचे बड़े अक्षर आकार में श्वेत वर्ण में DEEPAK GUPTA लिखा है। नीचे बड़े अक्षर आकार में The Gril with no dreams लिखा है जो श्वेत वर्ण और तीरछे अक्षर हैं। इसके नीचे छोटे आकार में श्वेत वर्ण में ADVENTURES ON SELF DISCOVERY AND TRUE FRIENDSHIP लिखा है।
    पुस्तक के कवर का चित्र

    मैंने मेरे शिक्षण कार्य में विभिन्न विद्यार्थियों को पढ़ाया है। पहली बार एक छात्रा ने मुझे एक पुस्तक दी और उसने वो पुस्तक पढ़ ली थी। उसने इस पुस्तक के बारे में अपने विचार नहीं बताये थे लेकिन मुझे अच्छा लगा कि मुझे किसी ने एक छोटी सी पुस्तक दी है। मैंने सोचा था कि कभी इस पुस्तक को पढ़ूँगा लेकिन आज अचानक से मेरा पढ़ने का मन हुआ और मैंने एक ही जगह बैठकर पुस्तक को पूरा पढ़ लिया। पुस्तक की भाषा अंग्रेज़ी है और लेखक का नाम दीपक गुप्ता है। पुस्तक में लिखे अनुसार मुझे लेखक कुछ उल्लेखनीयता वाला नहीं लगा लेकिन फिर भी पुस्तक को पढ़ने में मुझे कोई बुराई नहीं लगी। अतः मैंने इसे पढ़ा। पुस्तक का शीर्षक द गर्ल विद नो ड्रीम्स (The Girl With No Dreams) है जिसका मेरे शब्दों में अर्थ "वो लड़की जिसके कोई सपने नहीं हैं" है। पुस्तक में कुल 36 पृष्ठ हैं जिनमें पहले पृष्ठ में मुद्राधिकार की जानकारी है, दूसरे पृष्ठ में विषयसूची है, तीसरे और चौथे पृष्ठों में प्रस्तावना दी गई है। इसके अतिरिक्त एक पृष्ठ में लेख के अन्य कार्यों के बारे में लिखा था अतः पुस्तक का पहला पाठ पृष्ठ संख्या छः से आरम्भ होता है। पुस्तक में कुल सात पाठ हैं और इस तरह पुस्तक के केवल 33 पृष्ठ पढ़ने योग्य हैं। मैं एक धीमा पाठक हूँ अतः मुझे पढ़ने में सामान्य लोगों की तुलना में अधिक समय लगता है। पिछले कुछ वर्षों में यह एकमात्र पुस्तक है जिसे मैंने एकसाथ पूरा कर लिया।

    पुस्तक की प्रस्तावना में बिना सपनों वाली उस युवती का परिचय दिया गया है जिसकी आयु 12 वर्ष है और वो जंगल के मध्य में बांस की बनी उस कुटिया में रहती है जो उसकी माँ ने पिछले छः वर्ष में बनायी थी। उसका जन्म एक वैश्यालय में हुआ था अतः उसकी माँ को उसके पिता की जानकारी नहीं है। उसकी माँ उसे वैश्यावृत्ति से बचाने के लिए यहाँ एकांत में ले आयी थी। वो यहाँ तब आये थे जब वो केवल छः वर्ष की थी। इसमें लिखा गया है कि सपने वो औषधि अथवा अफीम है जो हमें जीवन में कुछ प्राप्त करने की शक्ति देते हैं। हम कभी-कभी अपने जीवन में दुख से बाहर आ जाते हैं लेकिन जीवन के कुछ दुख स्थायी होते हैं और हमेशा साथ में रहते हैं। युवती का नाम अमांडा है। अमांडा और उसकी माँ अपने जीवन व्यापन के लिए अपनी कुटिया के बाहर सब्जी और कुछ अन्य पौधे लगाती हैं और इसके लिए अन्य जानवरों से रक्षा के लिए बाड़ करके रखती हैं।

    पहले पाठ की शुरुआत वहाँ से होती है जब अमांडा की माँ उसको कहती है कि वो हिरण के बच्चे को बाड़ के बाहर ही रोक दे और अमांडा को उसपर दया आती है लेकिन उसकी माँ इसके लिए उसे मना कर देती है और समझाती है कि स्वयं के लिए हमें क्रूर होना पड़ता है। इस पाठ में माँ-बेटी का प्यार दिखाया गया है जिसमें माँ अपनी बिटिया का माथा भी चुमती है। बीटिया भी अपनी माँ की आज्ञाकारी बेटी है और वो ही उसकी दुनिया है।

    पुस्तक के दूसरे पाठ में अमांडा अपनी माँ के सामने जंगल में अकेले घूमने की माँग रखती है। थोड़ी सी जिद्द के बाद माँ उसे इसकी अनुमति दे देती है लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए एक चाकू भी देती है। अमांडा जंगल में घुमते हुये एक पेड़ पर चढ़कर फल भी खाती है और अनुभव करती है कि कैसे वो एक कुटिया और छोटे स्थान में स्वतंत्र थी लेकिन इस स्वतंत्र जंगल में वो डरती भी है। उसे एक पानी की बड़ी झील भी दिखाई देती है जिसमें वो स्नान करना चाहती है। इसके लिए वो अपने कपड़े उतारती है और स्वयं को देखती है। वो पहली बार स्वयं को पहचानती भी है क्योंकि उनके घर में कोई भी दर्पण नहीं है। जब वो स्नान करके बाहर आती है तो वो अपने कपड़ों को गायब पाती है और अब डरकर वापस पानी में चली जाती है। उसे यहाँ एक युवक भी मिलता है और वो उसके कपड़े लेकर आया था। वो जब उसके साथ कठोरता से सामने आती है और अपने कपड़े वापस देने के लिए कहती है तो वो युवक बताता है कि वो बन्दर से छीनकर उसके कपड़े लाया था। वो अमांडा के कहे अनुसार दूर चला जाता है। वो युवक ऐसा आदर्श व्यक्ति है जो केवल उसे प्यार ही प्यार देता है भले ही अमांडा अपनी माँ के समझाये अनुसार और अपने व्यक्तिगत अनुभवों के कारण उसे समझ नहीं पाती। वो उसे एक आम भी देने का प्रयास करता है जबकि अमांडा ने कभी आम का स्वाद नहीं चखा था। हालांकि वो कुछ भी लेने से मना कर देती है। युवक उसे पुनः मिलने का कहता है लेकिन अमांडा ना कहकर चली जाती है।

    तीसरे पाठ में वो युवती वापस अपनी माँ के पास आती है। यहाँ उसकी माँ को वो आम मिलता है जो अमांडा को उस युवक ने दे दिया था। भले ही उसने वो आम लिया नहीं था लेकिन फिर भी उसे पता नहीं कैसे मिल गया था। उसकी माँ जब इसके बारे में पूछती है तो युवती झूठ बोल देती है कि एक आम का पेड़ मिला था। उसकी माँ भी आसानी से मान लेती है। जबकि उसकी माँ को पता है कि उस जंगल में वहाँ आम का पेड़ नहीं है। इसमें वो दौर दिखाई देता है कि कैसे बच्चे बाहर के प्रभाव में अपने माता-पिता से दूर होने लगते हैं। हालांकि अमांडा के लिए माता-पिता दोनों के स्थान पर अकेली माँ ही है।

    चौथे और पाँचवे पाठ में अमांडा को वो युवक याद आता है जिससे वो जंगल में मिली थी और अपनी माँ की अनुपस्थिति में उससे मिलने चली जाती है। रयान नामक यह युवक उसे जल्दी ही मिल जाता है और उसे उसके सपनों की तरफ दौड़ाता है। यह एक आदर्श स्थिति लगती है जिसमें बहुत ही प्यार से एक युवक अपनी प्रेमिका को उसके सपने पूरे करवा देता है। रयान अपनी कुटिया भी अमांडा को दिखाता है और दोनों में इससे और अधिक लगाव हो जाता है। उसके बाद रयान उसे एक सुनहरा फूल दिखाने लेकर जाता है। सूर्यास्थ होने वाला है लेकिन वो भी इसके लिए उत्तेजित है। एक बहुत लम्बे पेड़ के नीचे रयान उसे लेकर जाता है और कहता है कि इसके उपर वो फूल है, वो पेड़ पर चढ़कर फूल तोड़कर लायेगा लेकिन अमांडा जिद्द करके पेड़ पर चढ़ती है। वो फूल तोड़कर लाती है लेकिन अब रयान कहता है कि वो झूठ बोल रहा था। वो उसका बहुत ऊँचे पेड़ पर चढ़ने का सपना पूरा करना चाह रहा था जो उसने पूरा करवा दिया। इनमें ये भी दिखाया गया है कि कैसे अमांडा उस युवक पर हमला कर देती है जब वो उसे अपनी कुटिया दिखाता है लेकिन वो उससे प्यार भी करने लगती है जैसे ही वो उसका दुख देखती है। अब वो अपनी माँ की चिन्ता छोड़कर रयान के साथ ही घूमना पसन्द करने लगती है। वो यह भी समझने लगती है कि दुनिया में सभी व्यक्ति बूरे नहीं होते।

    छठे और अंतिम पाठ में अन्दाज़ पूरा फिल्मी हो जाता है। इसमें अमांडा कुछ जुगनू साथ लेकर अपनी कुटिया में पहुँचती है लेकिन उसकी खुशी तब दुख में बदल जाती है जब वो रयान के बारे में अपनी माँ को बताती है और उसके थोड़ी ही देर बाद उसकी माँ मर जाती है। हालाकि अब वो रयान से शिकायत करने जाती है और उसके द्वारा दिये सुनहरे फूल से उसकी माँ वापस जीवित हो जाती है और उसके बाद रयान गायब होने लगता है और अमांडा को ज्ञात होता है कि रयान वास्तविकता में कोई नहीं था बल्कि अमांडा की कल्पना मात्र था। यह पुस्तक मैंने एकसाथ ही बैठकर पूरा कर लिया। हालांकि इसके लिए मुझे मोबाइल को बंद करना पड़ा था क्योंकि साथ में कुछ और सुनते हुये पढ़ नहीं पा रहा था। हालांकि कुछ पंजाबी गानों के साथ इसे पढ़ लिया जिनको भी ध्यान से सुने बिना मैं समझ नहीं पाता हूँ।

    सोमवार, 6 मई 2024

    द एलकेमिस्ट : पुस्तक समीक्षा

    पीले और लाल रंग का एक चित्र जिसमें सबसे उपर श्वेत वर्ण में "65 MILLION COPIES SOLD" लिखा है। बीच में बड़े गहरे लाल अक्षरों में "THE ALCHEMIST" लिखा है जिसके ठीक नीचे छोटे अक्षरों में श्वेत वर्ण में "A FABLE ABOUT FOLLOWING YOUR DREAM" लिखा हुआ है। नीचे पिरामिड जैसी गहरी लाल संरचनाओं के उपर श्वेत अक्षरों में लेखक का अंग्रेज़ी में नाम "Panlo Coelho" लिखा है जिसका स्वरूप हाथ से लिखे जैसा है।
    पुस्तक के कवर का चित्र
    वर्ष 2022 में मैंने द एलकेमिस्ट (The Alchemist) नामक पुस्तक अमज़ोन से क्रय की। इसका सुझाव किसने दिया था यह तो याद नहीं लेकिन सम्भवतः सुदेव प्रधान नामक एक छात्र ने इसका सुझाव दिया था। उस समय सुदेव प्रधान भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान बरहमपुर में एमएससी कर रहा था। इस पुस्तक की रचना पाउलो कोइल्हो (Paulo Coelho) ने की है जिसकी मूल भाषा पुर्तगाली है। मैंने इसका अंग्रेज़ी अनुवाद क्रय किया है। पुस्तक के शुरूअती पृष्ठों में लेखक के सन्देश के नाम पर कुछ लिखा है लेकिन पढ़कर ऐसा लगा जैसे वो अनुवाद करने वाले का लेखन हो। इसमें दो लोगों को अनुवादक के रूप में दिखाया गया है जिनमें पहला मार्गरेट जूल कोस्टा (Margaret Jull Costa) है और दूसरा नाम प्रस्तावना के अनुवादक के रूप में है और यह नाम क्लिफर्ड ई लैंडर्स (Clifford E. Landers) है। पुस्तक के पृष्ठ संख्या 1 से मूल पाठ आरम्भ होता है लेकिन पहले दो पृष्ठों में पढ़ने के लिए कुछ नहीं है और ये खाली हैं। इसके बाद पृष्ठ संख्या 3 से पहला भाग आरम्भ होता है। मैं इस पुस्तक को 1 दिसम्बर 2022 को पढ़ना आरम्भ कर चुका था। मुझे इसकी भाषा थोड़ी कठिन लग रही है अतः पहले पैरा से पढ़ना आरम्भ किया लेकिन पहले दिन केवल एक पैरा ही पढ़ पाया था।

    इस बीच मैं कुछ अन्य कामों में व्यस्त हो गया और बीच में अन्य पुस्तकें पढ़ना आरम्भ कर दिया। 30 जुलाई 2023 को मुम्बई से जयपुर यात्रा के दौरान मैंने इस पुस्तक को पुनः पढ़ना आरम्भ किया। इसमें एक गड़रिये की कहानी है। वो एक अच्छे परिवार से था लेकिन वो अपने पुश्तैनी काम को छोड़कर गड़रिया बनना चाहता था क्योंकि इस क्रम में वो विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर सकता था और बहुत कुछ सीख सकता था। रेलगाड़ी की यात्रा के दौरान आजकल पुस्तक पढ़ना उतना सामान्य नहीं है जितना 15 वर्ष पहले होता था। 15 वर्ष पहले रेलयात्रा के दौरान पुस्तक पढ़ने वाले लोग शिक्षित की तरह देखे जाते थे क्योंकि अन्य लोगों के पास कोई काम नहीं होता था। लेकिन अब सभी के पास स्मार्टफोन होता है और रेलयात्रा के दौरान सोशल मीडिया चल रही होती है। अतः माहौल के विपरीत जाकर मैंने पुस्तक पढ़ना जारी किया। कुछ पृष्ठ पढ़ने के बाद मुझे ऐहसास हुआ कि पुस्तक केवल पढ़ने के लिए उचित नहीं है। इसमें बहुत कथन हैं जिन्हें कहीं भी प्रयुक्त किया जा सकता है। वर्ष 2007 में जारी एक हिन्दी फ़िल्म "ओम शांति ओम" में तो एक संवाद बहुत लोकप्रिय हुआ था जो इसी पुस्तक से लिया गया है। यह संवाद चाहत और उसके मिलने की राह के बारे में है। पुस्तक को पढ़ते हुये मैंने कुछ वाक्यों को इस तरह समझा:
    • लोगों से जान पहचान होने के बाद वो आपके परिचित होने लगते हैं। उसके बाद वो चाहते हैं कि आप बदल जायें। यदि आप उनके अनुसार नहीं बदलते हैं तो उन्हें गुस्सा आता है।
    • किसी दुसरी पुस्तक के बारे में बताते हुए कि दुनिया का सबसे बड़ा झूठ ये है कि हम जीवन के एक मोड़ पर, हमें क्या हो रहा है इसपर अपना नियंत्रण खो देते हैं और स्वयं के जीवन को भाग्य के भरोसे नियंत्रित होने के लिए छोड़ देते हैं।
    • लोगों से बात करने से बेहतर है भेड़ के साथ रहें जो कभी कुछ भी विचित्र बातें नहीं कहती या एकांत में पुस्तक पढ़ लें जो अपनी पूरी कहानी तब सुनाती है जब हम सुनना चाहते हैं।
    • जब आप किसी चीज को चाहते हो, पूरा ब्रह्माण्ड उसे प्राप्त करने में आपकी सहायता करता है। (when you want something, all the universe conspires in helping you to achieve it.)
    • जब आप कुछ पाना चाहते हो तो उसकी एक कीमत चुकानी पड़ती है। बुजुर्ग ने इसकी कीमत उसकी 1/10 भेड़ों को मांग लिया था।
    • गड़रिया उस व्यापारी की बेटी को याद करते हुए सोचता है कि उसके लिए हर दिन एक जैसा होता होगा। उसे तो याद भी नहीं होगा कि वो उससे कब मिली थी। लोगों के लिए हर दिन एक जैसा होता है क्योंकि वो ये समझ ही नहीं पाते कि हर दिन उनके जीवन में कुछ अच्छा होता रहता है।
    • जब आप पहली बार खेल रहे होते हो तो आपको अपनी जीत सुनिश्चित दिखाई देती है।
    • आप सब जगहों की सुंदरता को देखो और उसका आनंद लो, लेकिन अपने मुख्य लक्ष्य और अपने हाथ में रखे अपने सामान को मत भूलो, इसी में खुशी मिलेगी।
    • एक दिन में सबकुछ बदल गया, अब उसके पास एक भी भेड़ नहीं है और वो दूसरे देश के एक सुनसान बाजार में है।
    • मैं दुनिया को वैसा देखता हूँ जैसा मुझे अच्छा लगता है, वैसा नहीं जैसी वास्तव में ये है।
    • अपना भाग्य पत्थर से जानने की कोशिश की तो पाया कि उसके थैले में छेद है और दोनों पत्थर जमीन पर पड़े हैं, अर्थात कुछ बातें जानने का प्रयास भाग्य के भरोसे नहीं करना चाहिये।
    • कैंडी स्टाल को लगाते समय को याद करते हुए उसे याद आया कि वो स्पेनी भाषा में बोल रहा था और स्टॉल वाला व्यक्ति अरबी में। फिर भी दोनों को एक दूसरे की भाषा बिना शब्दों की जानकारी के समझ में आ रही थी। ये कुछ वैसा ही अनुभव था जैसा उसे अपनी भेड़ों के साथ बातें करते हुये अनुभव होता है। (मेरे व्यक्तिगत जीवन में ऐसा अनुभव वर्ष 2013 का है जब जिनेवा में उस बस चालक महिला ने मुझे फ्रांसीसी भाषा में मेरा गंतव्य समझाया था जबकि मैं उसे हिन्दी में पूछ रहा था।)
    • 30 वर्ष तक एक ही व्यापार या काम करने के बाद कोई दूसरा काम पकड़ना लगभग असंभव होता है।

    उपरोक्त कथनों के बाद मैं पुस्तक को आगे नहीं पढ़ता और सोचता हूँ कि बाद में पढ़ूँगा। बाद में लम्बे समय तक नहीं पढ़ पाया। हालांकि बीच में जो कुछ पढ़ा भी, उसका सारांश नहीं लिखा। सम्भवतः मैंने पुस्तक पूरी करने के उद्देश्य से पढ़ना जारी रखा। गड़रिया भेड़ों को बेचकर जो धन एकत्र करता है, वो एक चोर उसे धोका देकर चुरा लेता है। उसके बाद वो भूखा-प्यासा एक कांच के बर्तन की दुकान में नौकरी करता है। वहाँ वो काफी धन अर्जित कर लेता है। उसके बाद आगे की यात्रा में वो एक अंग्रेज़ से मिलता है। अंग्रेज़ एलकेमिस्ट से मिलना चाहता है। गड़रिया अपनी यात्रा के दौरान फातिमा नामक एक युवती से मिलता है और दोनों में प्यार भी हो जाता है। उसे एलकेमिस्ट भी मिलता है। वो ऊंट की जगह घोड़े से यात्रा करने के लिए कहता है क्योंकि ऊंट अचानक से साथ छोड़ देता है जबकि घोड़ा धीरे-धीरे कमजोर होता है। अपने गंतव्य के लिए रवाना होने से पहले बालक फातिमा को अपने प्यार का इजहार करता है और कारण बताने की कोशिश करता है लेकिन युवती उसे रोक देती है। युवती के अनुसार प्यार होने का कोई कारण नहीं होता, ये बस हो जाता है।

    पुस्तक में एलकेमिस्ट शब्द के भी परिस्थिति अनुसार अलग-अलग अर्थ बताये गये हैं जिन्हें मैं मेरी भाषा में समझूँ तो एक ऐसे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों से है जो अपने अनुभव से इस स्तर पर पहुँच गये हैं कि उन्हें हर परिस्थिति से आसानी से बाहर निकलना आता है। उन्हें निरोग रहना आता है और रोगी को दवा देने का भी अनुभव है। उन्हें कठिन परिस्थितियों जैसे युद्ध अथवा किसी ऐसे निर्जर स्थान से बाहर निकलने का भी अनुभव होता है। मई 2024 के शुरूआती सप्ताह में मैं एकदिन सुबह जल्दी उठा और पुस्तक के कुछ पृष्ठ पढ़े। यहाँ मैंने पुनः कुछ वाक्य अपनी समझ के अनुरूप लिखे, जो निम्नलिखित हैं:
    • गड़रिये ने अपना कारण बताया जिसमें अपनी यात्रा बताई और साथ में वो कथन बोला जिसके अनुसार पूरा ब्रह्माण्ड उन्हें मिलाना चाहता है।
    • विश्व की आत्मा में सबकुछ लिखा हुआ है और ये हमेशा रहेगा।
    • दिल की बात नहीं मानने पर वो बार बार याद दिलाएगा और समय के साथ पश्चाताप जैसा अनुभव करवाएगा।
    • प्रत्येक खोज की शुरुआत, शुरुआत करने वाले  के भाग्य के साथ आरम्भ होती है लेकिन इसका अंत जीतने वाले के विभिन्न परख लेकर होता है।
    • सबकुछ जो केवल एकबार होता है, वो दोबारा नहीं हो सकता। लेकिन सबकुछ जो दो बार होता है, वो तीसरी बार बिलकुल होगा।
    पुस्तक का अंत किसी के लिए रोचक हो सकता है और किसी के लिए निराशाजनक। क्योंकि गड़रिया जिस खज़ाने की खोज में निकला था वैसा उसे कुछ नहीं मिला। लेकिन दूसरे ढ़ंग से देखा जाये तो वो बचपन से ही कुछ नया सीखने की चाह रखता था। उसने अपने आप को गड़रिया भी इसी कारण से बनाया था। अंत में वो मिश्र के पिरामिड देख पाया जबकि वो जहाँ से चला था वहाँ से पिरामिड के बारे में सोचना भी नामुमकीन था। उसने अपने कमाये धन को दो बार खोया और पिरामिड दिखाई देने के बाद पुनः खो दिया। उसने जीवन में अनेक पड़ाव देखे और हर पड़ाव में एक अलग सीख मिली। यह ही जीवन है।

    पुस्तक के अंत में दो पृष्ठों में पुस्तक का सार दिया गया है जिसमें पुस्तक की कहानी को लघु रूप में दिया गया है लेकिन मुझे लगता है कि यह सार पुस्तक पढ़े बिना समझ में नहीं आयेगा। अंत में पुस्तक के लेखक "पाउलो कोएल्हो" का एक साक्षात्कार छापा गया है जिसके अनुसार लेखक धर्म और अध्यात्म की बात करता है। लेखक के अनुसार धर्म जीने का एक तरीका है लेकिन अध्यात्म इससे पूर्णतः अलग है। धर्म पर कुछ विशेष लोग कब्जा कर लेते हैं जबकि वो धर्म नहीं होता।

    बुधवार, 25 जनवरी 2023

    ऐसी वैसी औरत : पुस्तक समीक्षा

    ऐसी वैसी औरत का मुखपृष्ठ
    ऐसी वैसी औरत का मुखपृष्ठ

    मैंने इस पुस्तक के विषय में पहले नहीं सुना था लेकिन पिछले कुछ माह से बार-बार गुप्ता जी इस पुस्तक समलैंगिकों की बात पर सन्दर्भित किया करते थे। उनके अनुसार पुस्तक में कई कहानियों में से एक समलैंगिक महिलाओं की कहानी भी है और उन्हें वो कहानी केवल लेखिका की मनगढ़ँत कहानी लगी, अतः उन्होंने लेखिका से पुष्टि के लिए फोन पर बात की थी। 25 जनवरी 2023 को मुझे खोजते हुये इसकी पीडीएफ़ फाइल मिल गयी तो सोचा पढ़ ही लूँ। मिलते ही मैंने पहली कहानी पढ़ डाली और उसके बाद इसकी समिक्षा लिखना आरम्भ कर रहा हूँ।

    लेखिका ने कहानियाँ लिखने से पहले अपनी दो बातें रखी हैं। उन बातों के अनुसार लेखिका को अपने परिवेश की कहानी अथवा लोगों के अनुभव अथवा स्वयं के अनुभवों से घुटन होने लग गयी थी। लेखिका ऐसा अनुभव कर रही थी कि ये सबकुछ समाज के सामने आना चाहिए और उन्होंने ये पुस्तक लिखकर अपनी उस घुटन को दूर किया।

    कहानी शुरू होने से पहले लेखिका ने अपने मन के भावों को एक लघु कविता में लिखा है जिससे स्पष्ट होता है कि ये कहानियाँ उस परिवेश से हैं जिसमें महिला को पानी की तरह होती है जिसमें मिला दो उसी तरह की हो जाती है लेकिन महिला को समाज में उसे उस रस्सी की तरह काम में लिया जाता है जिसको जहाँ चाहे उपयोग कर लिया जाता है और जब चाहे तब उसी अवस्था में उसे फैंक दिया जाता है। लेखिका अपनी पुस्तक को शायद सभी महिलाओं को समर्पित करने के स्थान पर उन महिलाओं को सम्बोधित करना चाहा है जिनको समाज ने अलग-थलग करने का काम किया है।

    पुस्तक में कुल दस कहानियाँ हैं जिनके शीर्षक (1) मालिन भौजी, (2) छोड़ी हुई औरत, (3) प्लेटफार्म नंबर दो, (4) रूम नंबर 'फ़िफ़्टी', (5) धूल-माटी-सी ज़िंदगी, (6) गुनहगार कौन, (7) सत्तरवें साल की उड़ान, (8) एक रात की बात, (9) उसकी वापसी का दिन और (10) भँवर हैं। मैं हर कहानी की समीक्षा अलग-अलग लिखना पसन्द करूँगा।


    मालिन भौजी
    मैंने कहानी पढ़ना आरम्भ करने से पहले सोचा था कि भाभी और देवर के रिश्ते पर होगी लेकिन यह अलग ही कहानी थी। इसमें अधेड़ आयु की एक उस महिला के बारे में लिखा गया है जिसके पति के निधन के पश्चात् समाज में त्याग कर दिया जाता है। मैं इस कहानी से स्वयं को पूरी तरह नहीं जोड़ पाया क्योंकि मैं जिस समाज में पला बढ़ा हूँ वहाँ पर बच्चा पैदा होने से पहले सामान्यतः महिलाओं के विधवा होने पर उनका या तो दुसरी बार विवाह कर दिया जाता है या फिर नाता प्रथा से उन्हें एक बन्धन में बांध दिया जाता है। समस्या सामान्यतः बच्चों की माँ बनने के बाद आती है और वो भी उस समय जब बच्चे थोड़े बड़े हो जायें। लेकिन इस कहानी के अनुसार एक महिला को विधवा होने पर ससुराल और मायके दोनों तरफ से निकाल दिया जात है। वो ससुराल की सम्पत्ति में कचहरी के माध्यम से अपना हिस्सा लेती है और इसमें सहयोग करने वाला व्यक्ति ही आगे उसके जीवन में एक स्थायी सहारा बनता है। कहानी उस किरायेदार ने कही है जो उस महिला के घर पर किरायेदार है और आयु में काफी छोटा है। एक नौकरी करता है और उसी के कारण वो इधर रहता है। कहानी की सुन्दरता यह है कि महिला थोड़ी पढ़ी-लिखी है और आज भी पढ़ने लिखने का शौक रखती है। ये महिला समाज के तानों और बातों पर ध्यान नहीं देती है और अपने आप को हर परिस्थिति में सम्भालकर रखती है। मैंने बहुत महिलाओं में कठोरता देखी है लेकिन वो उनके बच्चों और परिवार के समर्थन में ही देखी है लेकिन इस कहानी की नायिका के तो बच्चा और परिवार है ही नहीं, अतः यह इस कहानी की भिन्नता है।

    छोड़ी हुई औरत
    यह रज्जो नामक एक ऐसी परित्यक्ता की कहानी है जिसको छोड़ी हुई औरत क्यों कहा जाये, यह समझना ही मुझे थोड़ा मुश्किल लगा लेकिन बाद में ध्यान आया कि ससुराल से छोड़ दिया गया है। यह उस औरत की कहानी है जिसकी अपनी एक प्रेम कहानी है लेकिन उस कहानी को बिगाड़ने वाले उसके बड़े भाई हैं। वो बिना माँ-बाप की युवती उस समय असहाय होती है जब उसके भाई अपने अनुसार एक अच्छे घर में उसकी शादी करते हैं लेकिन शादी में इतनी जल्दबाजी कर दी की दुल्हे के बारे में कुछ भी जानना उचित नहीं समझा और उसी का परिणाम था कि वो विवाह के एक वर्ष बाद छोड़ी हुई औरत बन गयी। वो अपनी ज़िन्दगी को कैसे करके आगे निकाल ही रही थी कि उसके सबसे छोटे भाई की शादी होती है और उसमें गाँव से महिलाओं को भी बारात में जाने की छूट मिलती है लेकिन इसमें वो परित्यक्ता शामिल नहीं थी। इसका परिणाम शायद उसे उसका प्यार मिल जाये, यह हो सकता है क्योंकि कहानी का अन्त मुझे समझ में नहीं आया। सम्भव है वो अन्त एक सपना था या सच्चाई, क्योंकि ऐसा वास्तविकता में मैंने कभी नहीं देखा। कहानी को उस महिला के शब्दों में लिखा गया है जो रज्जो के पड़ोस में जन्मी है और उससे उम्र में छः वर्ष छोटी है लेकिन बचपन में उसी से सबकुछ सीखा था अतः उसके साथ अथाह प्यार भी है। सामाजिक बंधनों के कारण वो उसके साथ नहीं है लेकिन अब अपने चचेरे भाई के बेटे अर्थात् भतीजे के विवाह का बहाना बनाकर रज्जो से मिलने आती है। ग्रामीण परिवेश ऐसी कमजोर औरतें सामान्यतः समाज में बहुतायत में देखने को मिल जाती हैं लेकिन प्रेमकहानी वाली बात शायद मैं कभी प्रेक्षित नहीं कर पाया। साथ में अपने गाँव की बोली-भाषा से वो प्यारा अनुभव इसमें दिखाया गया है वो ऐसे लगता है जैसे मेरा अपना ही अनुभव हो।

    प्लेटफार्म नंबर दो
    यह कहानी इरम नामक उस लड़की की है जो प्लेटफॉर्म नंबर दो पर भीख मांगकर अपना गुजारा करती है और वहाँ तक पहुँचने के लिए वो अपने घर से भागकर आती है क्योंकि उसके बाप की मार से उसकी माँ मर चुकी है और उसका बाप अब उसे और उसकी बहन को भी पीटता है। यहाँ भीख मांगना भी आसान नहीं था क्योंकि सामने वाले हर व्यक्ति का एक अलग व्यवहार होता है। इसके अतिरिक्त भीख का भी व्यवसाय होता है जिसमें सबके क्षेत्र विभाजित होते हैं। लेकिन कहानी इसके आगे की है जब एक गार्ड की नौकरी करने वाली महिला इस भीख मांगने वाली बच्ची को खाना खिलाती है और धीरे-धीरे करके अपना गुलाम बनाकर वेश्यावृत्ति में धकेल देती है। वेश्यावृत्ति का भी यह स्तर की पूरे शारीरिक विकास से पहले ही उसे तीन मर्दों के साथ भेज दिया जाता है जो उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं और बेहोशी की हालत में फेंक जाते हैं। इरम को अस्पताल पहुँचाया जाता है लेकिन वहाँ भी पूरी निगरानी है जिसमें उसका पूरा ध्यान रखा जाता है कि वो कहीं भाग न जाये। इरम की हमराज पूजा है और उसकी कहानी भी वैसी ही है, अन्तर केवल इतना है कि पूजा घर से भागकर नहीं आयी थी बल्कि उसके बाप ने बेच दिया था। अस्पताल में दोनों ने जहर पीकर अपने जीवन को खत्म कर लिया। यह कहानी यदि मैंने आज से दस वर्ष पहले पढ़ी होती तो शायद बकवास लगती लेकिन अब मैंने स्वयं ऐसे किस्से देखे हैं और बच्चे और उनका ऐसा अपहरण देखा है। मैंने वेश्यावृत्ति नहीं देखी लेकिन उसकी इतनी कल्पना करना मेरे लिए मुश्किल नहीं है अतः यह एक सामाजिक समस्या को इंगित करती कहानी प्रतीत होती है।

    रूम नंबर 'फ़िफ़्टी'
    यह कहानी मुझे बहुत सुन्दर लगी। इसमें हॉस्टक के कमरा संख्या 50 में रहने वाली शैली नामक लड़की की कहानी है जो समलैंगिक है। सामान्यतः बहुत लोग समलैंगिकता को केवल दिमाग का वहम और बिमारी के रूप में देखते हैं लेकिन यह ठीक उसी तरह है जैसे अन्य लोगों में अथवा अन्य तरह के प्रेम संबंधों में। कहानी को अरीन नामक एक मुस्लिम युवती के शब्दों में लिखा गया है जो अपने हॉस्टल के जीवन में रही सहेली के बारे में लिख रही है। उसकी सहेली को समलैंगिक कहकर उसकी समलैंगिक साथी ने ही बदनाम कर रखा था। यह केवल अल्पसंख्यकता को निर्दिष्ट करता है। सामान्यतः लोग बहुसंख्यक को सही मान लेते हैं जबकि सत्य अथवा असत्य का अल्पसंख्यक अथवा बहुसंख्यक से कोई लेना देना नहीं होता। विश्व में अथवा विश्व के किसी भी भाग में समलैंगिक लोग अल्पसंख्यक ही मिलेंगे क्योंकि बहुसंख्यक तो इतरलिंगी ही मिलेंगे। यदि आपको यह कहानी अच्छी न लगे तो कृपया अपने विचारों को खोलने का प्रयास करें न की कहानी को झूठलाने का।

    धूल-माटी-सी ज़िंदगी
    धूल-माटी से ही समझ में आता है कि मिट्टी से भरी हुई ज़िन्दगी। यह एक गरीब घर की कहानी ही हो सकती थी। यह एक किसान या मजदूर की कहानी हो सकती थी लेकिन यहाँ पर यह एक गरीब महिला की कहानी है जिसके एक छोटी सी बच्ची है और वो उसके अपने से बांधकर रखती है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि बड़े घरों के लोगों में भावनायें भले ही हों, उनके लिए गरीबी का जीवन समझना मुश्किल होता है। इसके अतिरिक्त गरीबी के जीवन में कैसे गुजारा होता है यह भी दिखाया है। इसमें वो गरीब महिला अपने काम कैसे पूरा करती है और कैसे अपने घर को सम्भालती है, यह दिखाया गया है। इसमें वैसे तो सबकुछ अच्छे से लिखा गया है लेकिन एक प्रश्न अभी भी अधूरा रह गया कि उस खंडहर में वो गरीब महिला क्यों गयी थी। महिला की मौत हो गयी, यह ही इस कहानी का एक सच हो सकता था अन्यथा शायद कहानी अधूरी रह जाती। कहानी का अन्त भले ही दुखद है लेकिन कहानी एकदम सटीक और सत्य जैसी लगती है।

    गुनहगार कौन
    कहानी गुनाहगार की तलाश में है लेकिन मुझे तो इसमें कोई गुनाह दिखाई नहीं देता। शिक्षा व्यवस्था को थोड़ा गुनाहगार कह सकता हूँ जिसने लोगों को सच्चाई समझने का मौका ही नहीं दिया। यह कहानी सना नामक उस महिला कि है जो एक लड़के का सपना देखती है और उसकी उसी से शादी हो जाती है लेकिन फिर उसे ज्ञात होता है कि उसके सपनों का राजकुमार तो पुरुष ही नहीं है। इसके बाद वो शारीरिक सुख के चक्कर में किसी और के प्यार में पड़ती है जो उसे दलालों के हाथ बेचकर वेश्यावृत्ति में धकेल देता है। इसके बाद उसकी मुलाकात उसके पति से होती है जो घर छोड़कर भाग गया था और उससे हिम्मत भी मिलती है। वो सात वर्ष बाद अपने भाई के घर जाती है और सोचती है कि वहाँ कुछ सहारा मिलेगा लेकिन वहाँ भाई उसे पहले ही त्याग चुका है। अन्त में जब आत्महत्या की ओर जा ही रही थी कि उसका पति उसे पुनः सम्भालने लग जाता है। कहानी बहुत ही मार्मिक और सही रहा पर है, केवल इसका अन्त जैसे खुशियों की तरफ बढ़ता हुआ दिखाया है, काश वैसा ही अन्त हर किसी वास्तविक जीवन का भी हो।

    सत्तरवें साल की उड़ान
    यह काकू नामक उस बुढ़िया की कहानी है जिसने पूरी ज़िन्दगी में कभी धन की कमी नहीं देखी लेकिन पति का सुख नहीं देख पायी और पति से जो दो बच्चे थे, वो भी अपने विवाह के बाद अपने-अपने परिवारों में व्यस्त हो गये जैसे माँ को भूल ही गये हों। उसका पति वर्ष में एक महिने के लिए उससे मिलने आता था और इसबार वो आखिरी बार आया था जिसके बाद काकू ने पति से तलाक लेने का निर्णय ले लिया। यह कहानी काकू की एक किरायेदार के शब्दों में है और शुरू वहाँ से होती है जहाँ एक नये मॉल में काकू को वो पासपोर्ट ऑफ़िस लाती है। इसे अब के और तब के संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है और नगरीय जीवन की एक कहानी को बयान करती है। ग्रामीण क्षेत्र इतना बुरा नहीं होता जहाँ गरीबी हो सकती है लेकिन अकेलापन इस स्तर का नहीं होता। लेकिन नगरीय जीवन चाहे धन की कमी न रहने दे लेकिन बाकी जीवन से सब रंग छीन लेता है।

    एक रात की बात
    यह मुझे एक प्रेमकहानी लगी जो नगरों में ही सम्भव है। यहाँ अपने पड़ोस की अपंग लड़की से बचपन से प्यार की गाथा एक लड़के बातों में लिखी गयी है। यह मेरे लिए थोड़ी फ़िल्मी है क्योंकि मैंने ऐसी प्रेमकहानियाँ मेरे वास्तविक जीवन में नहीं देखी और न ही ऐसी कहानियों की कभी कल्पना कर पाया। हालांकि इस कहानी में उस अपंग लड़की ज़ूबी के बचपन, किशोरावस्था और यौवन को बखुबी दिखाने का प्रयास किया गया है जिसका यौवन ही जीवन का अन्तिम पड़ाव है और वो मरने से पहले अपने स्त्रित्व के सुख को पाना चाहती है।

    उसकी वापसी का दिन
    लगभग दस वर्ष पुरानी बात है जब मैं कोलकाता से मुम्बई आ रहा था। रेलगाड़ी का वातानुकुलित डिब्बा था और पुणे में एक व्यक्ति मेरे पास आकर बैठा था जो मूलतः राजस्थान का था। उसने बताया था कि उसके एक छोटी सी बिटिया है। अब याद नहीं है लेकिन या तो डेढ या तीन वर्ष उम्र रही होगी उस बच्ची की लेकिन उसको छोड़कर उसकी माँ किसी और के साथ चली गयी है। मुझे उस व्यक्ति की बात विश्वसनीय नहीं लग रही थी लेकिन जिस तरिके से वो कह रहा था और उसके चेहरे पर जो भाव तो उससे वो सच लग रहा था। उसके बाद मैंने ऐसे अनगिनत किस्से सुने और देखे हैं और पिछले कुछ वर्षों में तो अपने घर में भी देख लिया। यह कहानी भी मुझे मेरे घर से जुड़ी हुई प्रतीत होती है और ऐसी महिलाओं पर गुस्सा भी आता है। क्या जरूरत होती है उन्हें बच्चों को जन्म देने की जब उन्हें उनका भी आगे कोई खयाल नहीं होता। यदि लेखिका की सोच दिखावटी नारीवाद से भरपूर होती तो शायद इस कहानी को भी वो अलग रंग रूप दे सकती थी और कह सकती थी कि एक बार प्रेमी के साथ क्या देखा उस आदमी ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया। लेकिन लेखिका ने बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है जो लाजवाब है। यह कहानी उन दो बहनों की और उनकी माँ की है जो अपनी दोनों बेटियों के भविष्य को दाँव पर लगाकर अपने प्रेमी संग रंगरलियाँ मनाती है जबकि उन बच्चियों का पिता उसकी सब मांग पूरी करता है। राज खुलने पर वो अपने प्रेमी संग भाग भी जाती है लेकिन जब बुढ़ापे में एक दुर्घटना में प्रेमी का निधन हो जाता है तब वो पुनः उस घर में आश्रय पाने की इच्छा रखती है जबकि अब तक बड़ी बेटी के विवाह की तैयारियाँ चल रही हैं और छोटी भी अब काफी बड़ी हो गयी है। माँ की ममता के किस्से बहुत देखने को मिल जाते हैं लेकिन ऐसी माँ भी इसी समाज में देखने को मिलती हैं।

    भँवर
    यह एक ऐसे जाल की कहानी है जिसमें नगरीय लड़कियाँ ही नहीं बल्कि गाँवों की लड़कियाँ भी फंस जाती हैं। मुझे भी पहले ऐसी बातों पर भरोसा नहीं होता था लेकिन जब कई युवतियों से उनके साथ अपनों द्वारा हुये शोषण की कहानियाँ सुनी तो विश्वास होने लग गया। इसमें शिखा नामक लड़की अपने विवाह से ठीक पहले अपने उस जीवन को याद कर रही है जब वो अपनी किशोरावस्था में अपने ही मोसी के बेटे की शिकार होती है। वो कैसे उसे अपने भँवर में फंसाकर शोषण करता है और वो अपनी पीड़ा किसी के साथ साझा नहीं कर पाती। यहाँ कहानी का एक पक्ष यह भी दिखाया है कि यह सब करने वाला राहुल नगरीय अथवा विदेशी परम्परा का मुरीद है और सबको उसी अंदाज़ में अपना बनाने की कला रखता है। गाँवों में भी ऐसे कुछ लोग मिल जाते हैं और उनका भी इरादा शायद ऐसा कुछ होता होगा। कहानी यह भी मार्मिक है और आस-पास के परिवेश से ही उठायी हुई लग रही है।

    लेखिका अंकिता जैन ने इस पुस्तक में विभिन्न समाज की ही कहानियों को अपने अन्दाज़ में पिरोया है और यह मेरे लिए भी एक अलग अनुभव की तरह रहा है।

    बुधवार, 23 नवंबर 2022

    हम सभी को नारीवादी होना चाहिये : पुस्तक समीक्षा

     

    इस वर्ष कथित नारीवादी सोच रखने वाली महिलाओं के कुतर्कों से परेशान होकर मैंने एक पुस्तक पढ़ने का निर्णय लिया और इसे भविष्य में क्रय करने की इच्छा से एमज़ोन के कार्ट में जोड़ लिया। इसी वर्ष सितम्बर में इसे क्रय भी कर लिया। इस पुस्तक का शीर्षक "We Should All Be Feminists" (हम सभी को नारीवादी होना चाहिये) है जिसे चिमामाण्डा नगोज़ी अदिची ने लिखा है। जब पुस्तक मेरे हाथ में आयी तो बहुत बुरा लगा क्योंकि यह आकार में बहुत छोटी और पतली थी जिसमें कुल 51 पृष्ठ हैं और इसका आकार ए4 पेपर के चौथे हिस्से का है। इसमें एक सकारात्मक पक्ष यह था कि इसे पढ़ने में अधिक समय नहीं लगेगा। इसकी लेखिका नाईजीरिया की हैं और यह पुस्तक उनके एक टेड-टॉक से लिखी गयी है। वर्ष 2012 में लेखिका ने टेडेक्स की बातचीत में इस विषय पर बोला था जिसे बाद में फोर्थ स्टेट ने वर्ष 2014 में प्रकाशित किया। इस पुस्तक में नारीवाद को परिभाषित किया गया है। मैं इस पुस्तक को पढ़ते हुये इसपर मेरे विचार प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।
    पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर कुछ वृत बने हुये हैं जिनको आधा काला और आधा सफेद रखा गया है। शायद इन्हें समानता प्रदर्शित करने के लिए दर्शाया गया है लेकिन यदि इनमें कोई यह कहे कि श्वेत को बायीं एवं काले को दायीं तरफ क्यों रखा गया है? श्वेत भी पूरी तरह श्वेत नहीं है, वो हलका पीलापन लिये हुये है। इसी तरह लेखक का नाम भी इस हल्के पीले रंग में लिखा है और उसके नीचे काले रंग में पुस्तक का शीर्षक है। पुस्तक के पहले पृष्ठ पर केवल परिचय नाम से शीर्षक रखा गया है और बाकी पहले दोनों पृष्ठ इस नाम पर खाली रखे गये हैं। पृष्ठ संख्या 3 पर निम्बंध आरम्भ होता है। पृष्ठ संख्या 3 और 4 पर लेखिका ने लघुतम रूप में यह बताया है कि उन्होंने यह भाषण क्यों और कौनसी परिस्थितियों में दिया था और इस पुस्तक में उसका संशोधित रूप लिखा हुआ है। अगले दो पृष्ठ फिर खाली हैं केवल एक जगह शुरूआत में पुस्तक का शीर्षक लिखा हुआ है। पुस्तक की वास्तविक शुरूआत पृष्ठ संख्या 7 से आरम्भ होती है।

    लेखिका ने इसकी शुरुआत अपने एक दोस्त ओकोलोमा से आरम्भ की है जो वर्ष 2005 में एक हवाई दुर्घटना में मर चुके हैं। लेखिका अपने इन भावों को शब्दों में नहीं लिख पाती हैं लेकिन अपने दुख को प्रकट कर रही हैं और उनके अनुसार उनका यह दोस्त पहला व्यक्ति था जिसने उन्हें फेमिनिस्ट अर्थात नारीवदी कहा। वो जब 14 वर्ष की थी तब उनके दोस्त ने एक दिन आपसी चर्चा/बहस के दौरान उन्हें कटाक्ष करते हुये नारीवादी कहा था। लेखिका को इस शब्द का अर्थ ज्ञात नहीं था लेकिन उन्होंने यह प्रत्यक्ष रूप में दिखाने के स्थान पर बाद में शब्दकोश में खोजना उचित समझा। इसके बाद लेखिका वर्ष 2003 की एक घटना का वर्णन कर रही हैं जब वो अपनी एक पुस्तक का प्रचार प्रसार कर रहीं थी तब एक पत्रकार ने उन्हें अनचाही सलाह दे दी। यहाँ लेखिका लिख रही हैं कि नाईजीरिया में ऐसे सलाह देने वाले बहुतायत में पाये जाते हैं। इसके बाद लेखिका कुछ रोचक बातें लिखती हैं। उनके अनुसार पत्रकार ने उन्हें कहा कि उनकी पुस्तक के बाद लोग उन्हें नारीवादी कहेंगे लेकिन उन्हें स्वयं को कभी नारीवादी नहीं कहना चाहिए क्योंकि नारीवादी महिलाओं को पति नहीं मिलते और इस कारण से वो दुखी रहती हैं। इसके बाद लेखिका ने स्वयं को खुश नारीवादी कहने का निर्णय लिया। इसके बाद उनका सामना नाईजीरिया की एक अकादमिक से जुड़ी महिला से हुआ जिनके अनुसार उन्हें नारीवादी पुस्तकें नहीं लिखनी चाहियें क्योंकि यह पाश्चात्य विचार है और अफ्रीकी लोग नारीवादी नहीं होते। इसके बाद लेखिका ने स्वयं को खुश अफ्रीकी नारीवादी कहने का निर्णय लिया। इसके पश्चात् उनके किसी दोस्त ने उन्हें बताया कि नारीवादी महिलायें पुरुषों से नफरत करती हैं जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने स्वयं को खुश रहने वाली अफ्रीकी नारीवादी जो पुरुषों से नफरत नहीं करती कहना आरम्भ कर दिया। इस तरह आगे बढ़ते हुये उन्होंने अपने आप को इस तरह परिभाषित कर लिया: खुश रहने वाली अफ्रीकी नारीवादी जो पुरुषों से नफरत नहीं करती, जो होठलाली (होठ को चमक लाने वाला) लगाती हैं, जो स्वयं के लिए ऊँची एडी की चप्पल/जुते पहनती हैं और यह पुरुषों के लिए नहीं करती। इस तरह उन्होंने इस शब्द की कृत्रिमता को दर्शया है कि लोग नारीवादी को इतना भारी मान लेते हैं जिसमें नकारात्मक भारीपन भरा हुआ है: वो पुरुषों से नफरत करती हैं, वो चोली से नफरत करती हैं, वो अफ्रीकी संस्कृति से नफरत करती हैं, वो ऐसा सोचती हैं कि वो हमेशा प्रभावी होती हैं, वो कभी शृंगार नहीं करती, वो कभी शरीर के बाल नहीं हटाती, वो हमेशा गुस्से में रहती हैं, वो हास्यवृत्ति नहीं रखती, वो गंधनाशकों का प्रयोग नहीं करती।

    इसके बाद लेखिका अपनी एक कहानी लिखती हैं जिसके अनुसार जब वो प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती थी तब शिक्षिका ने एक परख लेने का निर्णय लिया और बताया कि जो इस परख में शीर्ष पर होगा उसे कक्षा का मॉनीटर बनाया जायेगा। लेखिका इससे काफी उत्सुक थी क्योंकि मॉनीटर के पास बहुत सारे अधिकार होते हैं, वो पीटाई करने के लिए बेंत नहीं रख सकता लेकिन रुतबा कम भी नहीं होता। इस तरह उन्होंने अच्छी मेहनत करके कक्षा में शीर्ष अंक प्राप्त किये। लेकिन उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब उनकी शिक्षक ने बताया कि वो पहले बताना भूल गयी थी की मॉनीटर केवल लड़का हो सकता है अतः दूसरे स्थान पर रहने वाला लड़का मॉनीटर बन गया। शिक्षिका ने शायद यह तय मान लिया था कि कक्षा में शीर्ष पर तो लड़का ही रहेगा। वो लड़का मॉनीटर बनने में कोई रुचि नहीं रखता था और बहुत ही प्यारा था। लेकिन लेखिका ऐसी रुचि रखते हुये भी ऐसा नहीं कर पायी। लेखिका के अनुसार ऐसी परम्परायें लगातार बनी रहने पर हम उसे स्वाभाविक मान लेते हैं और इसको बदलने के बारे में सोचते भी नहीं हैं।

    इसके बाद लेखिका अपने एक और दोस्त की कहानी लिखती हैं जिनका नाम लुई/लुईस है और उसके साथ वो कई बार बातें करती थी और वो महिलाओं के पास कम जिम्मेदारियाँ होने के कारण उनका जीवन सरल होने की बात कहता था। वो प्रगतिशील विचारों वाला व्यक्ति है इसके साथ वो नाईजीरिया के बड़े नगर लेगोस की चर्चा करती हैं। लेखिका के अनुसार वहाँ पर अपनी कार खड़ी करने के लिए जगह नहीं मिलती लेकिन कुछ लोग स्वयंसेवक के रूप में लोगों की इसमें सहायता करते हैं और लोगों द्वारा उपहार के रूप में दिये जाने वाले धन से उनकी आमदनी होती है। इसमें एक दिन का किस्स लिखती हैं जिसके अनुसार उन्होंने एक दिन ऐसे स्थान से छोड़ते समय वहाँ सहायता करने वाले व्यक्ति को कुछ धन बख्शीश के रूप में देती है और वो व्यक्ति इसके बदले लुई को धन्यवाद देता है। वो दोनों इस धन्यवाद को समझ नहीं पाते हैं लेकिन बाद में लेखिका ने यह समझाया कि उस व्यक्ति के अनुसार लेखिका के पास जो धन है वो पूरा लुई ने उसे दिया है।

    लेखिका की अगली कहानी पुरुष और महिला में भिन्नता को समझाने से हुआ है जिसके अनुसार महिला बच्चों को जन्म दे सकती है लेकिन पुरुष नहीं लेकिन इसके विपरीत पुरुष शरीर से अधिक ताकतवर होता है लेकिन विश्व में महिलाओं की संख्या पुरूषों से अधिक होती है। इसके साथ ही वो केन्या की नोबेल पुरस्कार विजेता वंगारी मथाई के कथन के बारे में बताती हैं जिसके अनुसार ज्यों ज्यों ताकत के पदों में उपर जावोगे, महिलाओं का अनुपात कम होता जायेगा। उनके अनुसार आज से हज़ार वर्ष पहले पुरुषों का शासन होना समझ में आता है क्योंकि तब शारीरिक ताकत से ही अधिकार प्राप्त होते थे लेकिन आज का विश्व एकदम अलग है। आज ताकत के स्थान पर बुद्धिमता आधारित विश्व है और इसके लिए पुरुष एवं महिलाओं के हार्मोन में अन्तर नहीं होता। इसमें दोनों एक जैसे हैं लेकिन सत्ता के केन्द्र में आज भी बदलाव नहीं हुये हैं।

    लेखिका ने नाईजीरिया में एक होटेल का किस्सा लिखा है जिसमें उनसे पूछा जाता है कि वो किसके मकान में जाना चाहती हैं? वो अपना पहचान पत्र दिखाकर अकेली नहीं जा सकती क्योंकि वहाँ अकेली महिला को सेक्स-वर्कर समझा जाता है। अकेली महिला किसी अच्छे कल्ब या मधुशाला में नहीं जा सकती। जब भी वो किसी भोजनालय में जाती हैं तो अभिवादन उनके साथ होने वाले पुरुष का होता है। लेखिका को यह सौतेला व्यवहार बुरा लगता है लेकिन वो जानती हैं कि यह उन व्यक्तियों की गलती नहीं है क्योंकि वो उसी समाज में पले बढ़े हैं। वो लैंगिक भेदभाव के प्रति अपने गुस्से को भी लिखती हैं जिसके अनुसार उन्हें यह देखकर गुस्सा आता है कि महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव होता है। उनके एक परिचित ने सलाह दी कि गुस्सा महिलाओं को शोभा नहीं देता। उन्होंने एक किस्सा अमेरिका का भी लिखा है जिसमें उनकी दोस्त का एक पुरुष कर्मचारी के साथ व्यवहार और एक पुरुष की जालसाजी को सामने लाने का किस्सा लिखा है जिसमें जालसाजी वाला व्यक्ति उस महिला की शिकायत उपर के अधिकारियों को कर देता है जिसमें महिला होने के स्वभाव का तड़का लगा हो। एक कहानी उन्होंने अपनी अन्य अमेरिकी महिला दोस्त की लिखी है जो विज्ञापन सम्बंधित कार्य करती है और उसका बोस उसकी टिप्पणियों को अनसुना कर देता है और वह बात ही किसी पुरुष के कहने पर वो सुनकर मान लेता है। उसकी दोस्त बहुत रोती है और अपने आक्रोस को अपने अन्दर ही उबलने देती है। यहाँ इन कहानियों में मुझे कहीं भी महिला होना प्रतीत नहीं हुआ क्योंकि मैंने स्वयं अपने जीवन में ऐसा भेदभाव स्थानीयता और अन्य आधारों पर अनुभव किया है जबकि मैं पुरुष हूँ। मुझे यहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे लेखिका सभी परिस्थितियों को महिला चेहरे से जोड़कर उनको व्यापक रूप में दिखाना चाहती है जबकि इसकी व्यापकता कहीं और छुपी हुई है।

    आगे लेखिका ने इसका वर्णन किया है कि बाज़ार में ऐसे सामान बहुतायत में पाये जाते हैं जो एक महिला किसी पुरुष को कैसे खुश रखे इसका विवरण होता है लेकिन इसके विपरीत कुछ भी नहीं मिलता। लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि लड़कों को कैसे सहन करते हैं लेकिन लड़कों को ऐसा नहीं सिखाया जाता। मेरा विचार यहाँ पुनः विरोधाभाषी है। हाँ मुझे घर पर ऐसा नहीं सिखाया गया कि लड़कियों से कैसे बात करनी है लेकिन किसी भी मामले में ऐसे भेदभाव उस समाज में महसूस नहीं किये जाते जहाँ से मैं हूँ। बाज़ार में उपलब्ध सामान की बात की गयी है तो उसके स्थान पर यह भी बहुतायत में मिलता है कि एक लड़की अथवा महिला को कैसे खुश रखा जाता है। हालांकि इस मामले में दोनों तरह की कहानियाँ और सामान मुझे अर्थहीन लगते हैं। आगे लेखिका ने अपनी एक छात्रा का वाक्य लिखा है जिसके अनुसार वो उन्हें पुछ्ती है कि उसके मित्र ने उसे नारीवादी बातें न सुनने के लिए कहा है अन्यथा उसका वैवाहिक जीवन प्रभावित होगा। यहाँ पर लेखिका एक अलग दुनिया की बात करती हैं और कहती हैं कि हमें (पूरे विश्व में) अपने लड़कों को अलग और लड़कियों को अलग तरिके से पालन-पोषण करने की आवश्यकता है। मुझे लगता है लेखिका यहाँ पर अपने विचारों के अनुरूप वर्तमान से अलग की बात कर रही हैं लेकिन मुझे लगता है कि लड़के और लड़कियाँ दोनों का समान पृष्ठभूमि में पालन पोषण होना चाहिए।

    लेखिका ने बाहर होने वाले खर्चे में पुरुषों के भुगतान पर भी कहा है कि वहाँ भी लड़के और लड़की को अपना-अपने भाग का भुगतान करना चाहिये या जिसके पास अधिक है उसे भुगतान करना चाहिए। मैं यहाँ लेखिका से सहमत हूँ और जीवन में हमेशा ऐसा ही किया है। लेखिका ने आगे यह भी लिखा है कि महिलायें हमेशा अपने आप को पुरुषों से कम ऊँचाई पर रखती हैं और उन्हें बचपन से यह सिखाया जाता है कि जीवन में आगे बढ़ो, सबकुछ करो लेकिन बहुत अधिक सफलता प्राप्त मत करो अन्यथा आप पुरुषों को डराने लगोगी। आप यदि घर में पुरुष पर हावी होती हो तो भी लोगों के सामने ऐसा मत करना अन्यथा वो प्रभावहीन हो जायेगा। लेखिका यहाँ पुछती हैं कि ऐसा क्यों होता है? पुरूष और महिला में किसी को एक दूसरे पर अधिक प्रभावशाली क्यों होना है? नाईजीरिया के एक परिचित ने पूछा कि यदि कोई व्यक्ति उनके द्वारा धमकाया हुआ महसूस करे तो वो लिखती हैं कि उन्हें बिलकुल भी चिन्ता नहीं होगी क्योंकि उनके द्वारा जिस व्यक्ति को धमकाया हुआ महसूस होगा वो उनके जैसा नहीं होगा। आगे लेखिका कहती हैं कि लड़कियों को ऐसा सिखाया जाता है कि उन्हें विवाह करना है और बाद में उस वैवाहिक जीवन में उन्हें प्यार, खुशी और साथ मिलेगा। लेकिन यह केवल लड़कियों को ही क्यों सिखाया जाता है, लड़कों को क्यों नहीं? आगे वो नाईजीरिया के कुछ उदाहरण लिखती हैं जिसमें पहले के अनुसार एक महिला अपना घर बेचना चाहती हैं क्योंकि वो उस व्यक्ति को भयभीत नहीं करना चाहती जो उनके साथ विवाह करना चाहता है। दूसरे उदाहरण में वो एक अविवाहित महिला के बारे में लिखती हैं जो सम्मेलन में इसलिए विवाहित महिला जैसा शृंगार करके जाती है क्योंकि इससे उसके साथी उसे सम्मान देंगे। लेखिका उस महिला के शृंगार का विरोध नहीं कर रहीं बल्कि वो यह पूछ रही हैं कि ऐसे शृंगार नहीं करने पर सम्मान क्यों नहीं मिलेगा? महिलाओं पर समाज, परिवार और रिश्तेदारों का विवाह करने के लिए इतना दवाब होता है कि वो कई बार भयानक फैसले ले लेती हैं। आगे विवाह के बारे में पुरुष पर कोई दवाब न होने की बात कही गयी है। इसके बाद लेखिका ने स्पष्ट करना चाहा है कि यहाँ सामाजिक तौर पर भागीदारी की बात नहीं होती बल्कि स्वामित्व की बात होती है। हम यह तो अपेक्षा करते हैं कि महिला पुरुष का सम्मान करे लेकिन पुरुष से महिला की तरफ ऐसा कुछ नहीं समझते। सभी पुरुष और महिलायें इसपर कहेंगे कि "यह तो मैंने मेरे वैवाहिक जीवन की शान्ति के लिए किया।" आगे कुछ वाक्य लिखे हैं जिनके साथ यह प्रयास किया गया है जो प्रदर्शित करता हो कि महिला ही वैवाहिक जीवन के लिए अधिक समझौते करती है। लेखिका आगे लिखती हैं कि हम लड़कों का ध्यान नहीं रखते कि कितनी महिला-मित्र/प्रेमिकायें रखता है लेकिन लड़कियों को पुरुष-मित्र/प्रेमी की अनुमति नहीं देते और एक आयु के बाद अपेक्षा करते हैं कि वो एक अच्छे पुरुष के साथ विवाह कर ले। हम महिला के कौमार्य की बात करते हैं जबकि पुरुष के कौमार्य की नहीं करते जबकि कौमार्य दोनों का एक साथ ही चला जाता है। नाईजीरिया में ही एक विश्वविद्यालय में एक लड़की के साथ कुछ लड़कों ने बलात्कार किया तो सबने इसे गलत बताया लेकिन साथ में सवाल भी रखा कि वो लड़की चार लड़कों के साथ कमरे में क्या कर रही थी? लेखिका ने आगे लड़कियों को जन्म से यह प्रदर्शित करने की बात समझा रही हैं जिनमें उन्हें दिखाया जाता है कि लड़की के रूप में जन्म लेना अपराध है और इसके लिए उन्हें विशेष रूप से शरीर को ढ़ककर रखना होगा। वो नाईजीरिया की एक महिला के बारे में लिखती हैं जो गृहकार्यों में रुचि होने का दिखावा करती है और उसका विवाह होने के बाद ससुराल वालों की तरफ से इसकी शिकायत आती है कि वो बदल गयी है क्योंकि वो तो पहले भी दिखावा ही कर रही थी। यहाँ मैं लेखिका के एकतरफा उदाहरणों से इतना ही कह सकता हूँ कि कुछ हद तक कुछ उदाहरण सही हैं लेकिन कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो वास्तविकता में बहुत छोटे स्तर पर होते होंगे जिन्हें बड़ा करके दिखाया गया है क्योंकि मैंने तो इसका विपरीत भी देखा है और ऐसे बहुत लोगों को जानता हूँ जो एक सफल महिला को पाने के लिए अपना सबकुछ दाँव पर लगा देते हैं। अतः सही ढ़ंग से समझा जाये तो यह तर्क कुछ ठीक नहीं बैठता।

    लेखिका ने आगे के भाग में भोजन बनाने पर लिखा है कि विश्व में ज्यादातर महिलायें घर पर खाना बनाती हैं जबकि ऐसा जीन (जनन कोशिकायें) में नहीं होता होगा। जबतक 'शेफ' के रूप में बड़ी संख्या में पुरुष प्रसिद्ध नहीं हो गये तब तक लेखिका ऐसा मानती थी कि यह जीन के कारण है कि महिलायें ही खाना बनाने और सफाई में अच्छी होती हैं। लेखिका यह भी कहती हैं कि उनकी दादी के समय से लेखिका के समय तक आते हुये इसमें बहुत अधिक बदलाव हो गये हैं। यहाँ समझने लायक यह बात है कि वो सभी बदलाव उसके दादाजी के काल से भी जोड़े जा सकते हैं। मशीनीकरण बढ़ गया है और इसके कारण जो काम महिला और पुरुष के मध्य बांटकर रखे जाते थे उनमें से बहुत काम मशीनों ने ले लिये अतः बदलाव तो होना ही था। इसको नारीवाद से कैसे जोड़ा जा सकता है? आगे लेखिका ने दो उदाहरण दिये हैं जिनमें पहले में भाई-बहन का उदाहरण दिया है कि भाई को जब भी भूख लगती है तब उसके माता-पिता बहन को कुछ बनाकर लाने को कहते हैं जबकि यह काम दोनों को सिखाया जाना चाहिये था। मैं लेखिका के इस कथन से सहमत हूँ कि ऐसा जिस घर में होता है, नहीं होना चाहिए। इसके बाद दूसरे उदाहरण में वो समान डिग्रीधारी पति-पत्नी की बात की है और कहा है कि घर पर खाना हमेशा पत्नी ही बनाती थी। मैं यहाँ लेखिका अथवा उनके समर्थकों से पूछना चाहता हूँ कि ऐसा कहाँ होता है? महिलायें हमेशा स्वयं से बेहतर की खोज में स्वयं को खाना बनाने से जोड़ लेती हैं इसमें पुरुष का तो कोई दोष नहीं है। जो महिलायें स्वयं से कमजोर पति खोजती हैं वो इसका उल्टा भी करती हैं।

    लेखिका अपने स्नातक के समय के बारे में लिखती हैं कि उन्हें एक दिन कुछ प्रस्तुति देनी थी और उन्हें इस बात की चिन्ता हो रही थी कि वो क्या पहने जिससे उन्हें गंभीरता से लिया जाये जबकि उन्होंने अपना विषय अच्छे से तैयार किया था। यहाँ लेखिका ने अपने और भी कुछ विचार रखे हैं लेकिन इसमें मेरा स्वयं का अनुभव लेखिका के विचारों से अलग नहीं रहा है। मैंने स्वयं ने अपने पहनावे के लिए बहुत लोगों का कटाक्ष और टिप्पणियाँ सुनी हैं क्योंकि मैं मेरे अनुसार चलता हूँ अतः यहाँ यह भी लैंगिक मुद्दा होने के स्थान पर लोगों की सोच का मुद्दा है जिसका लैंगिकता से ज्यादा लेना देना नहीं है। लेखिका अपने आप को लड़कियों जैसा रखती हैं और वो सब करती हैं जो अन्य लड़कियाँ करती हैं और उन्हें अपने नारीवादी होने में किसी तरह की शर्म नहीं आती। मुझे यह सब सामान्य लगता है अतः इसपर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा।

    आगे लेखिका ने बताया है कि लोग लैंगिक मुद्दों पर बात करना पसन्द नहीं करते। सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि इसके लिए नारीवादी अथवा फेमिनिस्ट नाम क्यों? इन्हें मानव व्यवहार अथवा ऐसा कुछ क्यों नहीं कह सकते? लेखिका अपने विचार रखती हैं कि नारीवाद भी मानव अधिकारों का एक भाग है लेकिन केवल मानव अधिकारों की बात करने पर यह बड़ा मुद्दा पिछे रह जाता है जिसमें हज़ारों वर्षों का इतिहास शामिल है। यह तर्क मुझे इसी तरह लगता है जैसे बचपन में मेमने और शेर की कहानी पढ़ी थी। शेर ने मेमने को खाने के लिए गाली का बहाना बनाया और कह दिया कि तुमने नहीं तो तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे गाली दी थी। हालांकि यहाँ शेर और मेमना ताकत में अलग-अलग हैं लेकिन यह तर्क कुछ इस तरह का लगता है कि अपने आप को प्रसिद्धि दिलाने के लिए लोगों को हज़ारों वर्ष पूर्व का उदाहरण दे दो जबकि हमें सच में उस स्थान का 50 वर्ष पूराना इतिहास भी ज्ञात नहीं होता है।

    लेखिका ने आगे यह भी वर्णित किया है कि बहुत पुरुष कहते हैं कि हम लैंगिकता के बारे में नहीं सोचते और बहुत पहले ऐसे भेदभाव हुये होंगे लेकिन आज तो नहीं हैं। लेकिन वो भूल जाते हैं कि भोजनालय में भोजन करने के लिए जाते समय केवल पुरुष का अभिवादन किया जाता है, पुरुष का नहीं। ऐसा भेदभाव आज भी जारी है जिसको पुरूष सोच नहीं पाते हैं अथवा देखते भी नहीं हैं। लेखिका आगे यह भी कहती हैं कि लैंगिक भेदभाव और गरीबी-अमीरी का भेदभाव तुलना योग्य नहीं हैं। ये उदाहरण नारीवाद को कमजोर करने के लिए दिया जाता है अतः इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेखिका के अनुसार वो अपने उन अनुभवों को साझा कर रही है जो उन्होंने महिला होने के कारण देखे हैं ठीक उसी तरह से एक काले व्यक्ति ने अपने रंग के कारण कुछ अनुभव किये होंगे जिन्हें मानव-भेदभाव कहकर अथवा मानवाधिकार कहकर समाप्त नहीं किया जा सकता। कई पुरुष कह देते हैं कि महिला के पास नीचे वाली शक्ति होती है जिससे वो किसी भी पुरुष को काबू में कर लेती है। इसपर लेखिका का उत्तर यह है कि यह शक्ति नहीं है बल्कि यह केवल नीचे के सुख के आधार पर किसी का लाभ उठाना मात्र है क्योंकि यदि कोई पुरुष खराब व्यवहार वाला अथवा नपुंसक है तब क्या होगा? कुछ लोग कहते हैं कि महिला तो पुरुषों के अधीनस्थ होनी चाहिये क्योंकि यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है जिसपर लेखिका कहती हैं कि संस्कृतियाँ तो बदलती रहती हैं। वो अपने जुड़वाँ भतीजो/भानजों का उदाहरण देती हैं कि वो अब 15 वर्ष के हो गये और सबकुछ ठीक है लेकिन यदि ऐसा 100 वर्ष पहले हुआ होता तो उन्हें मार दिया जाता क्योंकि उस समय इब्गो लोगों में जुड़वाँ बच्चों को शैतान माना जाता था लेकिन आज ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता। लेखिका के अनुसार संस्कृति इंसान नहीं बनाती जबकि इंसान इसे बनाते हैं और यदि इंसान ऐसी संस्कृति बना लें जिसमें महिलाओं का कोई अधिकार नहीं तो फिर महिला उस संस्कृति का हिस्सा कैसे बनी?

    लेखिका अपने दोस्त ओकोलोमा को याद करती हैं जब उसने उन्हें पहली बार नारीवादी कहा था। उन्होंने शब्दकोश में इसका अर्थ देखा जिसके अनुसार नारीवादी वो लोग होते हैं जो सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से लैंगिक समानता में विश्वास रखते हैं। लेखिका ने इसका अन्त अपनी पड़दादी/पड़नानी और अपने भाई को नारीवादी कहकर किया है। उनके अनुसार उनकी पड़दादी/पड़नानी ने अपने विवाह का विरोध किया और अपनी पसन्द से विवाह किया जबकि वो नारीवाद का अर्थ भी नहीं जानती थी। इसी तरह उन्हें उनका भाई दिलेर और मर्दाना होते हुये भी बहुत प्यार लगता है जिसमें वो नारीवादी चेहरा देखती हैं। यहाँ इस निबंध में बहुत छोटी-छोटी कहानियाँ हैं जो समाज के एक पक्ष को दिखाती हैं लेकिन उसकी आधी परछाई मात्र से परिणाम निकाला जाता है। यहाँ ये परिणाम उस रक्त जाँच की तरह नहीं हैं जिसकी एक बूँद से उसका प्रकार और समस्यायें बता दी जाती हैं। अतः यह एक लम्बा तर्क का विषय हो सकता है।

    मेरे लिये अंग्रेज़ी भाषा में लिखी यह दूसरी पुस्तक है जिसे मैंने पूर्णतः पढ़ लिया है।